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________________ इंदौर में ला चातुर्मासी पक्खी का प्रतिक्रमण कर कालूगणी ने वहां से विहार कर दिया। ग्यारहवें गीत के प्रारम्भ में बसंत ऋतु का वर्णन है। बसंत के प्रथम दिन "इंदौर से प्रस्थान कर कालूगणी केसूर होते हुए बखतगढ़ पधारे। वहां से झकनावद जाना था। बीच में आगमवर्णित पाँच महानदियों में एक मही नदी थी। नदी में बहुत बड़े-बड़े पत्थर थे। पानी के स्पर्श को टालने के लिए पत्थरों पर पैर रखकर कालूगणी ने मही नदी पार की। झकनावद में पांच दिवस-प्रवास हुआ। वहां से पेटलावद पधारे। पेटलावद में झाबुवा स्टेट के चार बड़े जागीरदारों ने एक साथ कालूगणी के दर्शन किए। गंगापुर एवं ब्यावर के श्रावक वहां चातुर्मास की प्रार्थना करने आए। ब्यावर के श्रावक अपने साथ एक अखबार लाए थे। कालूगणी ने उसके बारे में जिज्ञासा की तो वे बोले-'एक स्थानकवासी साधु ने कुछ वर्ष पहले रतनगढ और सरदारशहर में अनशन किया था। उसकी पुनरावृत्ति ब्यावर में हुई। उनका अभिग्रह यह था-तेरापंथ की जो धर्मविरुद्ध प्ररूपणाएं हैं, उनमें परिवर्तन नहीं किया गया, उन्हें आगमों के आधार पर प्रमाणित नहीं किया गया और इस विषय में सरकार से स्पष्टीकरण नहीं करवाया गया तो मेरे यावज्जीवन अनशन है।' श्रावकों ने उस अनशन की परिणति के बारे में जानकारी देते हुए आगे कहा-'गुरुदेव! उनकी कोई शर्त पूरी नहीं हुई, फिर भी कुछ दिन बाद उनका अनशन सम्पन्न हो गया।' पता नहीं, उन्होंने क्यों अनशन किया और क्यों पारणा किया। बारहवें गीत में मालवा की अवशेष यात्रा का संक्षिप्त विवरण तथा समग्र मालवा में उपासना करने वाले श्रावक-श्राविकाओं का उल्लेख हुआ है। साथ ही यह भी बताया गया है कि चार मास की यात्रा के प्रारम्भ और अंत में लोगों की मनः स्थिति में जमीन आसमान जितना अंतर आ गया। रतलाम, जावरा, नीमच आदि क्षेत्रों में जहां विरोधी वातावरण था, वहां यात्रा की वापसी पर श्रद्धा के स्वर मुखर हो उठे। पेटलावद से पुनः मही नदी को पारकर कालूगणी रतलाम पधारे। वहां से मेवाड़ की ओर प्रस्थान का प्रसंग उपस्थित हुआ। मालवा के लोग उदास हो गए वे बोले- 'चार महीनों का समय बहुत जल्दी पूरा हो गया। हमें तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आप कल पधारे और आज विहार कर रहे हैं। हमने कोई स्वप्न देखा है अथवा यह सारा जादू का खेल है, कुछ समझ में नहीं आता।' तेरहवें गीत का प्रारम्भ मुनि मगनलालजी की चिंता से हुआ है। कुछ समय कालूयशोविलास-२ / ३६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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