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________________ की, वे अपने विरोध से बौखला कर प्रतिपक्ष का विरोध करने लगते हैं। हमारे तेरापंथ संघ की यह नीति रही है कि हम निम्नस्तरीय विरोध की कभी उत्तर नहीं देते। प्रतिपक्ष हमारे विरोध में लिखता ही रहा है, पर हमने उसे सहन ही किया है।' कालूगणी की स्पष्टोक्ति सुनकर पण्डितजी बहुत प्रसन्न हुए। नौवें गीत में बड़नगर में आयोजित मर्यादा-महोत्सव का प्रसंग है। मालवा के पूरे श्रावक समाज की ओर से महोत्सव के लिए बड़नगर का नाम प्रस्तावित किया गया। बड़नगर के केवल तीन परिवारों ने इतना बड़ा दायित्व संभालने का साहस किया। उस अवसर पर वहां देश भर से हजारो-हजारों लोग एकत्रित हुए। कालूयशोविलास केवल आख्यान या जीवन-चरित्र ही नहीं है, इसे काव्य या महाकाव्य की कोटि में लिया जा सकता है। ऋतुवर्णन महाकाव्य की एक कसौटी है। जीवन-चरित्र में सहजता से ऋतुओं की चर्चा नहीं आती, उसे सायास ही लाना पड़ता है। किंतु आचार्यश्री तुलसी ने मर्यादा-महोत्सव की सब ऋतुओं के साथ यौक्तिक तुलना कर इस उल्लास के प्रस्तुत गीत में काव्य की छटा बिखेर दी। दसवें गीत में उज्जैन एवं इन्दौर प्रवास की चर्चा है। बड़नगर से उज्जैन के रास्ते में चंबल नदी है। उस समय नदी में पानी इतना अधिक था कि वह सड़क पथ और उसके परिपार्श्व में दोनों ओर बह रहा था। स्थल पथ से जाने का मार्ग न मिलने के कारण कालूगणी ने आगमविधि के अनुसार साधु-साध्वियों के साथ नदी पार की। उज्जैन में कालूगणी ने नौ दिन प्रवास किया। इस बिन्दु पर सम्पन्न होने वाले गीत के मध्य में उज्जैन की ऐतिहासिकता निरूपित है। वीर विक्रमादित्य, सम्राट सम्प्रति, राजा चंडप्रद्योत, नटपुत्र रोहक आदि के साथ तेरापंथ धर्मसंघ के सातवें आचार्य डालगणी की जन्मभूमि होने का गौरव भी उज्जैन को प्राप्त है। गीत के अन्तिम चरण में इंदौर-प्रवास का वर्णन है। औद्योगिक और धार्मिक, दोनों दृष्टियों से मालवा में इन्दौर शहर का प्रमुख स्थान है। वहां कालूगणी का प्रवास गेंदालालजी मोदी के बंगले पर और दैनिक प्रवचन वहां के प्रमुख श्रेष्ठी हुकमचन्दजी (हाबली-काबली) के निवास-स्थान पर हुआ। इंदौर में यात्री भी बहुत आए। कलकत्ता से सेठ ईशरचन्दजी चौपड़ा भी आए। उनको ठहराने के लिए सेठ साहब ने अपना शीशमहल खोल दिया। इन्दौर के प्रमुख श्रावक नेमीचन्दजी मोदी बौद्धिक तो थे ही, योगसाधना में भी पूरा रस लेते थे। बहुत वर्षों तक उन्हें शय्यातर होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मोदीजी ने अपने पूरे परिवार के साथ उपासना का लाभ उठाया। ३८ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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