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जिण मारग में धुर स्यूं आदि जिणंद क, त्यां आदि काढी जिणधर्म री जी। त्यांरी सेवा सारे सुर नर चौसठ इन्द्र क, त्यां सारां पेली संजम लियो जी।।
२/१, २/११ म्हारी रस सेलड़ियां, आदीसर कीन्हो उत्तम पारणो। . १/५ ल्यो अखै तीज दिन, पोतो श्रेयांस कुमार उधारणो। म्हारी रस...ध्रुव.
गृह समाज अरु राजनीति तज, धर्मनीति पथ ध्यावै। बारै माह री विकट तपस्या, सुण मन विस्मय पावै जी।। म्हारी रस...
तू तो पल-पल राम समर रे, सुख पासी रे जिवड़ा!
हेम ऋषी भजिए सदा रे। ध्रुव. मुनिवर रे उपवास बेला बहुला किया रे, तेला चोला तंत सार हो लाल। पांच-पांच ना थोकड़ा रे, कीधा बहुली बार हो लाल।। हेम ऋषी...
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हां रे हूं तो इचरज पामी स्वामी वचने ताम जो, पूरब किहां ए आभा नगरी किम भणै रे लोय। हां रे ए तो आया पश्चिम दिशि थी किहां नृप चंद जो, जाण्यो मैं एह आगल कही होशे किणे रे लोय।।
पुण्य रा फल जोइजो। ध्रुव साधु श्रावक व्रत पाल नै रे, देव हुओ अभिराम। महले देवी मोह्यो चिंतवै रे, रखे चवां इण ठाम रे।। पुण्य रा...
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नमूं अनन्त चौबीसी ऋषभादिक महावीर। आर्य क्षेत्र मां घाली धर्म नों सीर।। महा अतुल बली नर शूर वीर नैं धीर। तीरथ प्रव्रतावी पोहता भव जल तीर।।
३७८ / कालूयशोविलास-२