SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वहां पधारे थे। उनके बाद वि. सं. १६११ में आचार्य जातलाजी का पादार्पण हुआ। उनके बाद उत्तरवर्ती तीन आचार्यों का इधर आगमन ही नहीं हुआ। मालवावासियों की विशेष प्रार्थना पर वि. सं. १६६२ में पूज्य कालूगणी ने कानोड़ से मालवा की दिशा में विहार किया। उस यात्रा में कालूगणी सादड़ी पधारे। वहां एक रात प्रवास कर प्रातःकाल विहार कर दिया। सादड़ी के राजरणाजी को सूचना मिली। उन्होंने रास्ते में आकर दर्शन किए। उनके विशेष अनुरोध पर कालगणी ने वहीं पर लगभग दस मिनट उपदेश दिया। तेरापंथ का परिचय पाकर राजरणाजी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने प्रसन्नता के साथ कालूगणी के प्रति आभार प्रकट किया। पांचवे गीत में पूज्य कालूगणी का मालवा में प्रवेश, मालवा श्रावक संघ की व्यवस्था, मालवा की भौगोलिक एवं प्राकृतिक स्थिति और नीमच के जैन समाज की मनः-स्थिति का संक्षिप्त चित्रण है। नीमच शहर में इस छोर से उस छोर तक घूमने के बाद भी ठहरने के लिए जैन बस्ती में स्थान नहीं मिला। आखिर शहर से बाहर एक राजपूत परिवार के मकान में पड़ाव हुआ। जैन लोगों के इस व्यवहार से जैनेतर लोग चकित हो गए। छठे गीत में जैनों की सघन बस्ती जावरा शहर के विरोधी वातावरण का वर्णन है। मन्दसौर में दो दिन प्रवास कर जावरा को जागृत करने के लिए कालूगणी ने वहां जाने का निर्णय लिया। उनके पहुंचने से पहले ही वहां प्रतिपक्षी पहुंच गए। उन्होंने सबसे पहले कालूगणी के प्रवास हेतु निर्धारित स्थान का परिवर्तन करवा दिया। इसके बाद लोगों को भ्रान्त बनाने के उपक्रम शुरू किए गए। लक्ष्य था जनता को कालूगणी के सान्निध्य से वंचित रखना। इसके लिए सार्वजनिक स्थलों पर तथा घरों की दीवारों पर विरोधी पोस्टर चिपकाने का काम व्यापक स्तर पर किया गया। विरोधी लोगों ने पोस्टर चिपकाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं की। उन्होंने तेरापंथ के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को तोड़-मोड़कर प्रस्तुति देते हुए सब लोगों को बता दिया कि यहां तेरापंथ के आचार्य आने वाले हैं इसलिए सब सावधान रहें। पूज्य कालूगणी के पास उक्त सारी बातें पहुंची तो सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्होंने कहा-'विरोधी लोगों ने हमारे जावरा पहुंचने से पहले ही हमारा प्रचार कर दिया, इस दृष्टि से वे हमारे उपकारी हैं। तीर्थंकरों के आगमन पर देव दुन्दुभि बजाते हैं, वैसे ही वे हमारा प्रचार कर रहे हैं। प्रचार-सामग्री में कागज, पैसा, समय आदि सब कुछ उनका है। हमारा तो प्रचार हो रहा है, इसलिए ३६ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy