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महाराणा के निर्देस उदयपुर के प्राइम मिनिस्टर पण्डित सुखदेव सहाय तथा लेफ्टिनेंट कैनल वीथम ने कालूगणी के दर्शन कर सारी स्थिति की जानकारी प्राप्त की।
दीक्षा का कार्यक्रम महाराणा कालेज में था। वहां पंचमी के दिन जनता की भीड़ उमड़ पड़ी। कालूगणी दीक्षा-स्थल पर पधारे। उधर शहर में एक अफवाह फैलाई गई कि पन्द्रह दीक्षार्थियों में एक बालक मीठालाल उदयपुर का है। उसके माता-पिता सात दिन से बेहाल हो रहे हैं। मीठालाल उन्हें देखकर रोता है, पर अग्रगण्य श्रावक उसे डरा-धमकाकर मोटर में बिठा जुलूस के साथ आ रहे हैं।
आई. जी. पी. लिछमणसिंहजी और सुपरिटेंडेंट रणजीतसिंहजी ने भी यह अफवाह सुनी। वे तत्काल कालूगणी के पास आए। कालूगणी ने उनको तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली बताई। उन्होंने यह भी बताया कि आज्ञा के बिना एक तिनका लेने मात्र से तीसरे महाव्रत का भंग हो जाता है। ऐसी स्थिति में माता-पिता की आज्ञा बिना दीक्षा कैसे दी जा सकती है।
दीक्षार्थियों का जुलूस महाराणा कालेज पहुंचा तो आई. जी. पी. ने स्वयं बालक मीठालाल से कुछ प्रश्न पूछे। बालक के उत्तर सुनकर तथा उसके माता-पिता से बातचीत कर आई. जी. पी. पूर्णतः संतुष्ट हो गए।
कालूगणी ने भरी सभा में बिना किसी बाधा के दीक्षा-संस्कार सम्पन्न किया। नवदीक्षित साधु-साध्वियों को साथ ले बाजार के बीच से होकर वे पुनः पंचायती नोहरे में पधार गए। आई. जी. पी. ने महाराणाजी के पास पहुंचकर बताया कि कान और आंख में केवल चार आंगुल का अन्तर है। किन्तु प्रस्तुत दीक्षा के प्रकरण में जो कुछ सुना और जो कुछ देखा, उसके आधार पर कान-आंख की दूरी लाख हाथ की मानी जा सकती है।
तीसरा गीत मालवा की प्रार्थना के साथ शुरू हुआ है। मालवा से स्पेशल ट्रेन आई। मालवा यात्रा के लिए भावपूर्ण अनुरोध किया गया। चातुर्मास सम्पन्न होने के बाद कालूगणी छोटे-बड़े गांवों का स्पर्श करते हुए राजनगर पधारे। वहाँ साधु-साध्वियों की सारणा-वारणा का काम किया। मालवा के लोगों को तब तक कोई संकेत नहीं मिला था। वे पुनः राजनगर आए। उनकी विशेष प्रार्थना पर कानोड़ की ओर विहार फरमाया। राजनगर से प्रस्थान कर कालूगणी पोष कृष्ण नवमी को कानोड़ पहुंच गए। वहां कानोड़-रावजी ने कालूगणी के दर्शन कर उपदेशामृत का पान किया।
चतुर्थ गीत में आचार्यों की यात्रा से होने वाले प्रभाव की चर्चा है। मालवा ऐसा प्रदेश है, जहां आचार्यों का आगमन बहुत कम हुआ है। आचार्य रायचन्दजी
कालूयशोविलास-२ / ३५