________________
करने के लिए आषाढ़ शुक्ला पंचमी के पुण्य प्रभात में कालूगणी का प्रवेश हुआ। पंचायती नोहरे में वि. सं. १६६२ के चातुर्मास की स्थापना हो गई। उस चातुर्मास में बत्तीस साधु और बत्तीस साध्वियां थीं।
चातुर्मास में तपस्या और पर्युषण पर्व की आराधना के साथ प्रस्तुत गीत सम्पन्न हो जाता है। __पन्द्रहवें गीत में मुख्य रूप से चरमोत्सव, पट्टोत्सव और दीक्षा की प्रार्थना का वर्णन है। दीक्षार्थी भाई-बहनों ने समवेत स्वरों में अपनी वैराग्य भावना निवेदित की। कालूगणी ने उनके सामने साधु जीवन के कठिनाइयों की चर्चा की। दीक्षार्थियों ने पूरी दृढ़ता के साथ संयमी जीवन के प्रति आस्था प्रकट की। उनके अभिभावक भी साथ थे। कालूगणी ने दीक्षार्थियों के स्वभाव तथा वैराग्य की परिपक्वता आदि के बारे में उनसे जानकारी चाही। अभिभावकों ने निवेदन किया कि उन्होंने अपनी ओर से इनकी पूरी परीक्षा कर ली है। अब आप कृपा कर इनकी भावना सफल बनाएं।
सोलहवें गीत में वि. सं. १६६० से १६६२ तक हुई दीक्षाओं का वर्णन है। इन दीक्षाओं में जोधपुर चातुर्मास में एक साथ बाईस दीक्षाएं हुईं। तेरापंथ के इतिहास में यह एक नवीन घटना थी। इस अवधि में मुनि रिखिराम, लच्छीराम, दयाराम आदि कुछ साधुओं को अनुशासनहीनता और दलबन्दी के कारण संघ से बहिष्कृत भी किया गया।
पंचम उल्लास पांचवें उल्लास के प्रारम्भिक संस्कृत श्लोक में पूज्य कालूगणी की महत्ता उद्गीत है। मंगलवचन में धर्माचार्य की गरिमा का संगान किया गया है।
प्रस्तुत उल्लास के प्रथम दो गीतों में उदयपुर के दीक्षा महोत्सव का वर्णन है। कवि ने दीक्षा का महत्त्व प्रकट करते हुए कालूगणी द्वारा स्वीकृत पन्द्रह दीक्षाओं का उल्लेख किया है। पन्द्रह दीक्षाओं की बात सुनते ही विरोधी लोग हरकत में आ गए। उन्होंने पैम्फलेट छपवा कर वितरित किए और राणाजी तक शिकायतें पहुंचाई। राणाजी तेरापंथ की दीक्षापद्धति से परिचित थे। उन्होंने हीरालालजी मुरड़िया के माध्यम से कालूगणी को निवेदन करवाया कि ये सारी हरकतें आदत से लाचार लोगों की है। आप घबराएं नहीं तथा राणाजी के दिल्ली जाने से पहले दीक्षा हो जाए तो ठीक रहेगा। राणाजी के निवेदन पर कार्तिक कृष्णा पंचमी दीक्षा की तिथि निर्णीत कर दी गई।
३४ / कालूयशोविलास-२