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________________ प्रभाव पड़ा। आचार्य ने युवाचार्य को पदच्युत कर उनके स्थान पर अन्य सुयोग्य शिष्य को युवाचार्य बना दिया । इस घटना से दूसरे लोगों पर क्या प्रतिक्रिया हुई, कहा नहीं जा सकता । स्वयं युवाचार्य के मन में किसी प्रकार का क्षोभ नहीं हुआ। उन्होंने सबके सामने अपनी भूल स्वीकार की, आचार्य का विनय किया और आचार्य के नए निर्णय का स्वागत किया । युवाचार्य के इस समभाव का इतना असर हुआ कि उनके लिए संघ ने आचार्य को विशेष निवेदन किया । आचार्य प्रसन्न हुए, पर युवाचार्य पद तो अब दूसरे शिष्य को दिया जा चुका था। फिर भी युवाचार्य ने उस समय जिस धैर्य, नम्रता और समता का परिचय दिया, उसके परिणामस्वरूप उन्हें युवाचार्य के बाद युवाचार्य पद प्रदान कर एक नए इतिहास का सृजन कर दिया गया। १५३. ‘दशाश्रुतस्कन्ध' आगम में आचार्य की आठ संपदाओं का उल्लेख है१. आचार संपदा २. श्रुत संपदा ३. शरीर संपदा ४. वचन संपदा ५. वाचना संपदा ६. मति संपदा ७. प्रयोग संपदा ८. संग्रह - परिज्ञा संपदा ( दशाश्रुत स्कन्ध अ. ४।३) १५४. उत्तराध्ययन सूत्र में बहुश्रुत मुनि के लिए सोलह उपमाओं की चर्चा है । आचार्यश्री कालूगणी का व्यक्तित्व सहज ही उन उपमाओं को अपने में समेटे हुए था। वे उपमाएं निम्नलिखित हैं१. शंख - २. अश्व ३. सुभट ४. हाथी ५. इन्द्र ६. सूर्य ६. वृषभ १०. सिंह ७. चन्द्र ११. वासुदेव ८. धान्यकोष्ठ १२. चक्रवर्ती १५. मेरु पर्वत १६. स्वयंभूरमण पर्वत (उत्तरज्झयणं ११।१५-३०) परंपरा के संवाहक आचार्य संख्या की सीमा में बांधना १५५. धर्मसंघ की धुरा के वाहक, जैनदर्शन की तीर्थंकरों के प्रतिनिधि होते हैं । उनके असीम गुणों को संभव नहीं है। फिर भी ससीम बुद्धि के द्वारा आचार्यों के गुणसमुद्र में अवगाहन करने का प्रयास किया गया है। पंचपरमेष्ठी के एक सौ आठ गुणों में आचार्य के छत्तीस गुण गिनाए गए हैं - पांच महाव्रत चार कषाय वर्जन १३. जम्बूद्वीप १४. सीता नदी पांच समिति तीन गुप्ति परिशिष्ट-१ / ३६१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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