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________________ १५१. सामान्यतः मनुष्य के एक मुंह होता है। एक से अधिक मुंह की स्थिति कुछ उलझन पैदा कर देती है । रावण की माता केकसी ने जिस समय दशकंधर पुत्र को जन्म दिया, उसके सामने समस्या खड़ी हो गई कि वह अपने पुत्र को दूध किस मुंह से पिलाए ? केकसी की भांति आचार्य श्री तुलसी ने भी अपने आराध्य देव कालूगणी से संबंधित संस्मरणों की अभिव्यक्ति में असमंजसता का अनुभव कर उसे विराम दे दिया। १५२. बात उस समय की है जब जैनधर्म में प्रभावक आचार्यों की शृंखला चल रही थी। उसी शृंखला की कड़ी में एक जैनाचार्य अपने सैकड़ों साधु-साध्वियों के परिवार के साथ विहरण कर रहे थे । आचार्य यौवन की दहलीज लांघकर स्थविर बन चुके थे। उचित अवसर देखकर उन्होंने अपने सुयोग्य शिष्य को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया । युवाचार्य ने पूरी दक्षता के साथ संघ का काम संभाल लिया । आचार्य अब अपना अधिक समय ध्यान - स्वाध्याय में बिताने लगे । एक बार आचार्य ने युवाचार्य को चातुर्मास के लिए कहीं अन्यत्र भेजा । युवाचार्य ने प्रस्थान किया । मध्यवर्ती क्षेत्रों के श्रावकों ने प्रार्थना की कि इस साल आपका चातुर्मास हमें मिलना चाहिए। युवाचार्य बोले- 'मुझे आचार्यश्री का आदेश अमुक क्षेत्र में जाने का है, अतः यहां नहीं रह सकता।' कुछ मुंहलगे व्यक्ति यह सुनकर बोले - 'महाराज ! आप तो युवाचार्य हैं, संघ की प्रभावना के लिए स्वतंत्र निर्णय भी ले सकते हैं युवाचार्य को अपने पद का गर्व हो गया। उन्होंने आचार्य के आदेश की उपेक्षा कर चातुर्मास दूसरे स्थान पर कर दिया । यद्यपि युवाचार्य संघ के मालिक होते हैं, किंतु आचार्य के तो शिष्य ही होते हैं । वे आचार्य के अनुशासन के प्रति जितने सजग रहते हैं, अन्य साधुओं को उससे बड़ी प्रेरणा मिलती है । चातुर्मास संपन्न कर युवाचार्य ने आचार्य के दर्शन किए। आचार्य ने पूछा - ' चातुर्मास कहां किया?' युवाचार्य ने सहमते हुए कहा- - 'गुरुदेव ! चातुर्मास तो वहीं करना था, पर अमुक क्षेत्र के लोगों की भावना प्रबल थी और अधिक उपकार की संभावना थी, अतः वहां कर लिया ।' आचार्य ने युवाचार्य को कड़ा उपालंभ देते हुए कहा- 'तुमने लोगों की भावना का इतना ध्यान रखा, पर आज्ञा और अनुशासन का बिलकुल ध्यान नहीं रखा। ये सैकड़ों साधु-साध्वियां तुमसे क्या शिक्षा ले सकेंगे? मुझे लगता है, तुम आचार्य पद के योग्य नहीं हो।' आचार्य की इस कड़ी चेतावनी से समूचे समाज पर एक ३६० / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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