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________________ देने का निर्देश दिया। संघ से बहिष्कृत होने के बाद भी फूलांजी अपनी दुष्ट प्रकृति से बाज नहीं आई। फलतः उनका जीवन आर्तध्यान में ही पूरा हुआ। उनकी पुत्री साध्वी राजकंवरजी ने छोटी अवस्था में दीक्षित होकर भी अपने-आपको संतुलित और स्थिर रखा। १५०. जहां संघ होता है, वहां कुछ व्यवस्थाएं भी आवश्यक हो जाती हैं। सामूहिक कार्यों के लिए कोई व्यवस्था न हो तो काम समुचित रूप से नहीं हो पाता। तेरापंथ संघ में कुछ काम वैकल्पिक पद्धति से किए जाते हैं। ये व्यवस्थाएं सामयिक होती हैं। आचार्यश्री कालूगणी के समय में कुछ कामों की व्यवस्था इस प्रकार थी • प्रत्येक मुनि संघीय दो पुस्तकों का प्रतिलेखन करे। जो पुस्तक-प्रतिलेखन की विधि नहीं जानता हो, वह दो पुस्तकों के अनुपात से काजा ले (मकान की सफाई करे)। आचार्य द्वारा विशेष कार्यों में नियुक्त साधुओं के अतिरिक्त प्राय सभी साधु सुबह या शाम एक समय आचार्य के साथ पंचमी समिति जाएं। जो किसी कारणवश न जा सके, वह एक अतिरिक्त पुस्तक का प्रतिलेखन करे या उस अनुपात में काजा ले। प्रायश्चित्त के परिष्ठापन अधिक हो जाएं और उन्हें उतारने की स्थिति न हो तो चौकों के धड़े करके परिष्ठापन उतारे जा सकते हैं। 'चौकों का धड़ा' तेरापंथ संघ का पारिभाषिक शब्द है। इसका भावार्थ है साधु-साध्वियों के लिए अपेक्षित भोजन-सामग्री का सीमांकन। साधु और साध्वियां अपना अलग-अलग धड़ा बनाकर दे देते। दोनों धड़ों को मिलाकर एक चौकों का धड़ा तैयार किया जाता। उदाहरणार्थ पचास साधु और पचास साध्वियां हों तो सौ के चौक पचीस होते हैं। चौक निश्चित कर उस धड़े को आचार्य को दिखा दिया जाता। आचार्य उसके अनुसार साधु-साध्वियों से आहार मंगवाते। वह आहार उस धड़े के अनुसार सबमें विभाजित हो जाता। इस कार्य के आधार पर दो, तीन, चार परिष्ठापन उतर जाते। इसी प्रकार समूची विगय या व्यंजन छोड़ने से, समुच्चय की चिरमली का प्रतिलेखन करने से भी परिष्ठापन उतरने का क्रम रहा है। १. साध्वी झमकूजी उस समय साध्वीप्रमुखा कानकंवरजी की देखरेख में साध्वियों का काम संभालती थीं। वे आचार्यश्री कालूगणी की विशेष कृपापात्र थीं। साध्वीप्रमुखा कानकंवरजी के बाद उनका दायित्व उन्हीं ने संभाला। परिशिष्ट-१ / ३५६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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