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पांच आचार पालन नव बाड़ सहित ब्रह्मचर्य पांच इन्द्रिय-विजय .. बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार आचार्य के छत्तीस गुण निम्नलिखित हैं१. आर्य देश
१६. दर्शन आचार २. प्रशस्त कुल
२०. चारित्र आचार ३. प्रशस्त जाति
२१. तप आचार ४. प्रशस्त रूप
२२. वीर्य आचार ५. दृढ़ संहनन
२३. सूत्र-विधिज्ञ ६. धैर्य
२४. अर्थ-विधिज्ञ ७. अनाशंसी
२५. तदुभय-विधिज्ञ ८. श्लाघानिरपेक्षता २६. आहरण (उदाहरण)-निपुण ६. ऋजुता
२७. हेतु-निपुण १०. स्थिर बुद्धि
२८. उपनय-निपुण ११. आदेय वचन
२६. नय-निपुण १२. जितपरिषद
३०. शीघ्रग्राही १३. जितनिद्रा
३१. स्व-समयज्ञ १४. मध्यस्थ
३२. पर-समयज्ञ १५. देशकालभावज्ञ ३३. गंभीर १६. प्रत्युत्पन्नमति
३४. अनभिभवनीय १७. अनेक देश भाषाविद ३५. कल्याणकारी १८. ज्ञान आचार ३६. शांत दृष्टि
३६२ / कालूयशोविलास-२