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________________ नेमनाथजी शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे। शास्त्रीय चर्चाओं में उनका अच्छा उपयोग था। अन्य संपद्राय के आचार्यों ने थली पहुंचकर जब तेरापंथ पर आक्षेपप्रक्षेप किया तो उनके साथ चर्चा-प्रसंगों में वे आगे रहते थे। उन्हें सामने देखकर कई व्यक्ति घबरा जाते थे। तेरापंथ संघ की सैद्धांतिक मान्यताओं को लेकर कहीं भी चर्चा का काम पड़ता, नेमनाथजी सदा तैयार रहते थे। चर्चा के लिए उन्हें खानदेश तक आमंत्रित किया गया। स्थानकवासी पूज्य जवाहरलालजी के साथ भी उन्होंने कई बार चर्चा की। १४१. वृद्धिचंदजी नाजिम (बीकानेर) जाति से कायस्थ थे। पहले वे थली प्रांत में तहसीलदार थे, बाद में नाजिम बन गए। यद्यपि वे जैन नहीं थे, पर तेरापंथ शासन के परम भक्त थे। कालूगणी की उन पर विशेष कृपा थी। वे प्रतिवर्ष कालूगणी के दर्शन किया करते थे। आचार्यश्री तुलसी के समय में भी जब तक वे जीवित रहे, उनका संबंध बना रहा। थली में वे काफी लोकप्रिय थे। वि. सं. १६६८ के आसपास कलकत्ता में बमबारी हुई तो शहर में भगदड़ मच गई। हजारों तेरापंथी श्रावक अपने मालअसबाब के साथ कलकत्ता छोड़कर भागे। उस समय यात्रियों को यातायात की सुविधा देने के लिए उन्हें दिल्ली भेजा गया। नाजिम महोदय अणुव्रत के आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति थे। कलकत्ता छोड़कर आनेवाले व्यक्तियों के साथ उनका व्यवहार सौहार्दपूर्ण और प्रामाणिक रहा। फलतः लोगों के मन में भी उनके प्रति सहज सहानुभूति रही। १४२. गणेशमलजी मथेरण (महात्मा) मूलतः रीणी के थे; फिर वे सरदारशहर आकर बस गए। उनके एक भाई का नाम बाघजी था। दोनों भाइयों के परिवारों में सैकड़ों व्यक्ति थे, वे सभी तेरापंथ शासन के पक्के भक्त थे। उन्होंने जयाचार्य के समय में धार्मिक श्रद्धा स्वीकार की थी। ___गणेशजी तेरापंथ दर्शन के अच्छे जानकार थे। जयाचार्य के ‘प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध' का अधिग्रहण (धारण) कर उन्होंने ही मुकसदाबाद भेजा था। गणेशजी सफल लिपिकार भी थे। उन्होंने संभवतः बत्तीस सूत्रों को लिपिबद्ध किया और अत्यंत भक्तिभाव से बहराया। धर्मशासन में किसी भी कार्य के लिए वे सदा तत्पर रहते थे। १४३. बीदासर-निवासी शोभाचंदजी बैंगानी के तीन पुत्र थे-हणूतमलजी, अमोलकचन्दजी और चंपालालजी। अमोलकचंदजी बचपन से ही कालूगणी के ३५४ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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