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________________ है?' काफी समय बीत जाने पर भी जब लेखन में विशेष प्रगति नहीं हुई तो उन्होंने एक दिन फरमाया- 'अभी तक इतना ही लिखा है?' कालूगणी की यह बात मुनि चौथमलजी को लग गई। उन्होंने भावावेश में आकर संकल्प कर लिया कि जब तक 'भिक्षुशब्दानुशासन' नहीं लिखा जाएगा, उन्हें छह विगय (दूध, दही आदि) खाने का त्याग है। कालूगणी को इस बात का पता चला, तब उन्होंने पूछा- 'त्याग क्यों किया?' मुनि चौथमलजी बोले-'गुरुदेव! बिना अभिग्रह काम होता ही नहीं है।' ___ कालूगणी ने मुनि चौथमलजी के संकल्प को प्रोत्साहन देने के लिए उन्हें सामूहिक और व्यक्तिगत कई कामों से मुक्त कर दिया। वे कालूगणी का प्रतिलेखन करते थे, साथ में पंचमी समिति जाते थे, इन कामों को भी बंद कर उन्हें दिनभर लेखन-कार्य का अवकाश दिया गया। इसके परिणामस्वरूप वे प्रतिदिन छह-छह पृष्ठ (लगभग १५० अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण) लिख लेते थे। कालूगणी के इस विशेष अनुग्रह और प्रेरणा से उन्होंने अपने कार्य को शीघ्र संपन्न कर दिया। उनके द्वारा प्रतिलिपि की गई भिक्षुशब्दानुशासन की वह प्रति आज भी तेरापंथ संघ के पुस्तक भंडार में सुरक्षित है और अध्ययन-अध्यापन में काम आती है। १३४. आचार्यश्री कालूगणी एक सफल मनोचिकित्सक थे। मन से रुग्ण व्यक्ति का निर्वाह कैसे हो, इस कला में वे दक्ष थे। मुनि चांदमलजी (जयपुर) ऐसे ही मुनि थे, जिन्हें हम मानसिक रोगी की श्रेणी में रख सकते हैं। शरीर से वे स्वस्थ लगते थे, पर अपने विभाग का काम करने तथा वजन उठाने में कसमसाहट करते थे। तत्कालीन संघीय परंपरा के अनुसार चौवन वर्ष के बाद समुच्चय के आधे वजन और साठ वर्ष के बाद पूर्ण वजन की छूट थी तथा गुरुकुलवास में जब तक शक्ति रहे, सभी काम करने आवश्यक थे। मुनि चांदमलजी साठ वर्ष से पहले ही वजन और काम की छूट मांगने लगे। कालूगणी को उनके निवेदन में औचित्य नहीं लगा, अतः छूट नहीं दी। वे कभी कड़ाई से और कभी कोमलता से उनको समझाते रहे, पर उनके मन का रोग बढ़ता गया और वे इस संबंध में गृहस्थों के सामने बात करने लगे। एक दिन मुनि चांदमलजी आवेश में आ गए और बोले-'मुझसे न कोई काम होगा और न वजन उठेगा।' कालूगणी ने उनको आश्वस्त कर कहा- ऐसा लगता तो नहीं है कि आप शरीर से इतने असमर्थ हैं। फिर भी आप असमर्थता अनुभव करते हैं तो आज से कोई काम मत करो और वजन भी मत उठाओ, पर इसके बदले में आपको एक विकल्प स्वीकार करना होगा। ३५० / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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