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एक छोटे से ग्राम 'टमकोर' में पले-पुसे थे। ग्रामीण परिवेश और सरल स्वभाव के कारण उनका रहन-सहन, संभाषण आदि प्रवृत्तियां अन्य मुनियों से असाधारण-भिन्न थीं। कालूगणी ने एक असाधारण बालक मुनि को असाधारण रूप से तैयार करने का लक्ष्य बनाया। 'तुलसी पाठशाला' में उनको प्रतिबोध मिला और आज वे अपनी साधना और प्रज्ञा के उत्तरोत्तर विकास से तेरापंथ-शासन की प्रभावना में योगभूत बन रहे हैं।
१२६. वि. सं. १६७६ में आचार्यश्री कालूगणी का चातुर्मास बीकानेर था। बीकानेर रियासत में तेरापंथ के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर विरोधी लोग उत्तेजित हो रहे थे। उनकी ओर से छापाबाजी, गालीगलौज और अन्य दूषित प्रवृत्तियों के साथ हत्या तक के षड्यंत्र बन रहे थे। ____ उस समय बीकानेर शहर से बाहर काफी दूर तक मिट्टी के बड़े-बड़े दूह थे। आचार्यश्री कालूगणी पंचमी समिति के लिए उधर ही पधारते थे। षड्यंत्रकारियों को अपने षड्यंत्र का उपयोग करने के लिए वह स्थान उपयुक्त प्रतीत हुआ। उन्होंने एक व्यक्ति (मदारी खां) को प्रलोभन देकर वहां छिपा दिया। कालूगणी सदा की भांति वहां पहुंचे। जब वे अकेले रह गए तो एक व्यक्ति ओट से निकलकर उनके सामने आया। उसके हाथ में भरी हुई पिस्तौल थी।
उस व्यक्ति ने ज्योंही कालूगणी की ओर देखा, वह उनके व्यक्तित्व से अभिभूत हो गया। उसके हाथ से पिस्तौल छूटकर गिर पड़ी। उसके मन और मस्तिष्क में उथल-पुथल मच गई। वह रुआंसा होकर कालूगणी के निकट पहुंचा
और चरणों में गिर पड़ा। कालूगणी ने अप्रत्याशित रूप से एक व्यक्ति को सामने देखकर पूछा-'क्यों भाई! क्या बात है?' वह बोला-'बात तो बहुत बड़ी थी, किंतु समय पर मेरी अक्ल ठिकाने आ गई। मैं एक दुष्कृत्य से बच गया। चांदी के चंद टुकड़ों के प्रलोभन में आप जैसे देवपुरुष को पिस्तौल का लक्ष्य बनाकर मैं अपना अहित नहीं करूंगा।'
कालूगणी ने विस्मित भाव से पूछा-'मुझे पिस्तौल का निशाना क्यों बनाना चाहते थे?' उस व्यक्ति ने समूचे षड्यंत्र का रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि अमुक-अमुक व्यक्तियों ने मुझे प्रलोभन देकर ऐसा जघन्य काम करने के लिए कहा, पर मेरा नसीब अच्छा था कि मैं समय पर संभल गया। वह व्यक्ति क्षमायाचना कर लौट गया।
कालूगणी सामान्य मनःस्थिति से शहर में पधारे तथा सब संतों को सजग कर दिया कि कम-से-कम चातुर्मास संपन्न होने तक इस घटना के संबंध में किसी
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