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________________ कर उन्होंने फरमाया-'ये तो बच्चे हैं, पर आप भी इनके साथ हो गए। मेरे द्वारा इतना स्पष्ट कहने के बाद भी आपने इनको बाहर जाकर देखने से रोका नहीं । सब संतों के साथ मंत्री मुनि ने भी गुरुदेव के वचनों के प्रति हुई आशातना के लिए क्षमायाचना की ।' १२५. वल्कलचीरी प्रसन्नचन्द्र राजर्षि का छोटा भाई था । उसका जन्म और लालन-पालन तापसों के आश्रम में हुआ। उसके पिता सोमचन्द्र ने उसके जन्म से कुछ समय पूर्व ही तापस-दीक्षा स्वीकार की थी। जन्म के कुछ समय बाद उसकी माता की मृत्यु हो गई। थोड़े दिन बाद उसकी धात्री मां भी काल - कवलित हो गई। उसके पश्चात आश्रम के ऋषि और ऋषिकुमार उसकी देखभाल करने लगे । वल्कल (छाल) का परिधान पहनने से वह वल्कलचीरी नाम से पहचाना जाने लगा । वल्कलचीरी एक बहुत ही सहज और सरल बालक था। उसके व्यवहार आबादी में पले हुए बच्चों से भिन्न प्रकार के थे। एक बार वह कहीं जंगल में भटक गया। जंगल में उसे एक रथिक मिला। वह पोतन नामक उसी आश्रम की ओर जा रहा था, जहां वल्कलचीरी अनेक ऋषियों, तापसों और ऋषिकुमारों के साथ रहता था । उसने कुमार वल्कलचीरी को रथ में बिठा लिया। रथ में उस रथिक की स्त्री भी बैठी थी । वल्कलचीरी ने उसको 'तात' इस संबोधन से संबोधित किया। रथिक की स्त्री ने कहा - 'यह बच्चा ऐसे कैसे बोल रहा है?' रथिक ने उसको समझाया - 'लगता है यह बच्चा स्त्री-विरहित आश्रम में पला है, इसलिए स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं समझता।' थोड़ी देर बाद वल्कलचीरी ने घोड़ों की ओर लक्ष्य करके पूछा - 'ये हिरण इतने बड़े कैसे हैं ? ' ( उसने आश्रम में हिरण के अतिरिक्त किसी पशु का नाम ही नहीं सुना था ) । जब उसे खाने के लिए मोदक दिए गए तो वह बोला- 'पोतन आश्रम के ऋषि कुमार मुझे ऐसे ही फल देते थे । (आश्रम में उसे खाने के लिए केवल फल ही मिलते थे) । आश्रम के परिवेश में रहने के कारण उसे शहरी सभ्यता तथा अन्य किसी प्रकार का ज्ञान नहीं था। आश्रम में जो कुछ होता, वही उसके ज्ञान का विषय था। यही भद्र और सरल स्वभाव वाला वल्कलचीरी आगे जाकर प्रतिबुद्ध हुआ । केवलज्ञान प्राप्त कर उसने अपने पिता सोमचन्द्र और भाई प्रसन्नचन्द्र को धर्मोपदेश दिया तथा भगवान महावीर के पास पहुंच गया। आचार्यश्री कालूगणी मुनि नथमलजी को वल्कलचीरी, बंगु, हाबू, शंभू आदि संबोधनों से संबोधित करते थे । इसका कारण यह था कि मुनि नथमलजी भी परिशिष्ट-१ / ३४३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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