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________________ अक्षय तृतीया की उस रात का वर्णन एक विशिष्ट शैली में किया गया है । भुजंगप्रयात और मोतीदाम छन्दों में डिंगल कविता के रूप में जो छब्बीस पद्य लिखे गए हैं, वे सम्पूर्ण कालूयशोविलास में अपने ढंग के पद्य हैं। प्रथम तेरह पद्यों में जंगल की भौगोलिक स्थिति का सजीव चित्रण है और शेष तेरह पद्यों में कवि ने अपनी कल्पना- प्रवणता से एक प्रश्न उपस्थित कर उसे समाहित किया है । 1 ग्यारहवें गीत में मेवाड़ की यात्रा का वर्णन है । घुटनों की पीड़ा के बावजूद पूज्य कालूगणी अपना वचन पूरा करने के लिए अरावली पहाड़ पर चढ़े । संकल्पबल और मनोबल प्रबल न हो तो उस पहाड़ी मार्ग पर लगातार तीन-चार घंटे चलना बहुत मुश्किल हो जाता है। मेवाड़ के छोटे-बड़े क्षेत्रों का स्पर्श करते हुए कालूगणी गोगुन्दा (मोटे गांव) पधारे। गर्मी के मौसम में भी वहां कंबल ओढ़कर सोने जैसी सर्दी का अनुभव हुआ। गोगुन्दा- प्रवास में पूज्य कालूगणी के हाथ में फोड़ा हो गया । व्रण-वेदना के बावजूद सारे कार्य व्यवस्थित चलते रहे । चातुर्मास के लिए उदयपुर पहुंचने का दिन आषाढ़ शुक्ला तृतीया निर्णीत किया गया । बारहवें गीत का प्रारंभ उदयपुर की दिशा में प्रस्थान से हुआ है । गोगुन्दा से उदयपुर की दूरी मात्र सात कोश बताई गई, किंतु पैरों से इक्कीस मील मापा गया तब उदयपुर आया। पूर्व निर्धारित तिथि के अनुसार आषाढ़ शुक्ला तृतीया के दिन मध्य बाजार से होकर कालूगणी फतेहलालजी मेहता की बाड़ी में पधारे। फतेहलालजी मेहता और हीरालालजी मुरड़िया राजमहल पहुंचकर राणा भोपालसिंहजी से मिले । उन्होंने कालूगणी की संतता का परिचय देते हुए कहा-'हमारे पंचम आचार्य मघवागणी यहां पधारे थे तब आपके पिता श्री राणा फतेहसिंहजी ने उनके दर्शन किए थे। आज मघवागणी के शिष्य कालूगणी यहाँ पधारे हैं। आप राणा फतेहसिंहजी की संतान है । मर्जी हो तो आप भी उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए कालूगणी के दर्शन करें, राणाजी की स्वीकृति पाकर उन्होंने कालूगणी को निवेदन कर दिया । आषाढ़ शुक्ला चतुर्थी के दिन सायंकाल लगभग छह बजे राजलवाजमे के साथ राणा भोपालसिंहजी कालूगणी के दर्शन करने मेहताजी की बाड़ी पहुंच गए। तेरहवें गीत में पूज्य कालूगणी और राणा भोपालसिंहजी का मिलन- प्रसंग साहित्यिक छटा के साथ वर्णित हुआ है । उस समय आकाश में मेघ मंडरा रहे थे । कालूगणी और राणाजी खुले आकाश के नीचे बातचीत कर रहे थे। लोगों को आशंका थी कि पानी बरसेगा और इस उपक्रम में बाधा उपस्थित हो जाएगी। किंतु जब तक राणाजी रहे, पानी की एक बूंद भी नहीं गिरी । ३२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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