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________________ करने आए। उनके अनुरोध पर गढ़ में हाजरी हुई । ठाकुर साहब ने शिकार और शराब छोड़कर त्यागमय अभिनन्दन किया । नौवें गीत में सुधरी में समायोजित वि. सं. १६६१ के मर्यादा - महोत्सव के अवसर पर श्रावक समाज द्वारा की गई व्यवस्थाओं का संक्षिप्त वर्णन है । मेवाड़ की भावपूर्ण प्रार्थना और कालूगणी द्वारा दी गई स्वीकृति का उल्लेख है । सुधरी से विहार कर आसपास के गांवों का स्पर्श करते हुए कालूगणी 'बड़ा गुड़ा' पधारे। वहां फाल्गुन शुक्ला सप्तमी को सायंकालीन प्रतिक्रमण के बाद कालूगणी और मुनि तुलसी के बीच पद्यमय संवाद हुआ। गुरु के असीम वात्सल्य और शिष्य के समर्पण को अभिव्यक्ति देने वाला वह संवाद इतिहास की एक विरल घटना के रूप में अंकित हुआ है । ' चतराजी का गुड़ा' गांव में उक्त प्रसंग की पुनरावृत्ति हुई । इन दोनों घटनाओं को देखने-सुनने वाले साधु-साध्वियों में मुनि तुलसी पर कालूगणी की असीम कृपा चर्चा का विषय बन गया। उसी वर्ष चातुर्मास के बाद पूज्य कालूगणी ने मुनि तुलसी को रामचरित्र सीखने का निर्देश दिया । इस निर्देश पर कई साधुओं को आश्चर्य हुआ, पर वह कालूगणी की दूरदर्शिता थी । उस समय यह कल्पना ही नहीं थी कि दो वर्षों में ही मुनि तुलसी को संघ का दायित्व संभालना होगा और उनके लिए रामचरित्र का वाचन अनिवार्य हो जाएगा । दसवें गीत का प्रारंभ कालूगणी द्वारा कांठा क्षेत्र के कतिपय गांवों की यात्रा से हुआ है । 'रामसिंहजी का गुड़ा' पधारने पर कालूगणी के घुटनों में दर्द हो गया । यात्रा में अवरोध होता देख 'भिलावा' का प्रयोग किया गया। उससे घुटनों पर छाले उभर आए। उनसे पानी निकलने पर वेदना कुछ कम हुई । अठारह दिन 'रामसिंहजी का गुड़ा' में रहकर कालूगणी ने वहां से विहार किया। जोजावर होते हुए वे सिरियारी पधारे। दोनों ही क्षेत्रों में वहां के ठाकुर साहब ने उपासना कर लाभ उठाया । सिरियारी की हाट में आचार्य भिक्षु ने अनशन किया था। कालूगणी ने उस स्थान का निरीक्षण किया। उनके घुटनों से पानी झरना बन्द नहीं हुआ, फिर भी मेवाड़ की यात्रा के लिए उनका संकल्प पक्का था । फलतः वे वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन 'फूलाद की चौकी' पर पहुंच गए। वहां मरुधर और मेवाड़ से सैकड़ों लोग पहुंच गए। जहां महापुरुषों का प्रवास होता है, वहां जंगल में मंगल हो जाता है। जहां, राम, वहीं अयोध्या। श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते हैं तो सूखा बाग सरसब्ज हो जाता है । ये किंवदंतियां केवल कपोल कल्पनाएँ ही नहीं हैं । इनकी यथार्थता को प्रमाणित कर रहा है जंगल में 'फूलाद की चौकी' पर पूज्य कालूगणी का प्रवास | कालूयशोविलास-२ / ३१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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