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________________ सातवें गीत में दीक्षा के प्रसंग को ही आगे बढ़ाया गया है। कालूगणी द्वारा स्पष्टीकरण करने के बाद बहुत लोग समाहित हो गए, फिर भी कुछ लोग अपनी पकड़ नहीं छोड़ पाए। उन्होंने राजभवन तक उल्टी-सीधी बातें पहुंचाई और दीक्षा रोकने की धमकी दी। पोखरण के ठाकुर चैनसिंहजी राठौड़ उनमें प्रमुख थे। उस स्थिति में जोधपुर के प्रमुख श्रावक प्रतापमलजी मेहता ने आत्मविश्वास और साहस के साथ घोषणा कर दी- 'धर्मनीति-सम्मत तेरापंथ की दीक्षा न कभी रुकी है और न कभी रुकेगी। यदि किसी को आपत्ति हो तो वह मशीनगन भेज दे। हजारों लोग पूरे होश के साथ अपने प्राण देने के लिए सन्नद्ध हैं।' मेहताजी की चुनौती के सामने ठाकुर-साहब का जोश ठंडा हो गया, दीक्षा का विरोध शांत हो गया। जोधपुर में दीक्षार्थी भाई-बहनों की शोभायात्रा पूरे ठाट-बाट के साथ निकली। लोगों ने विस्मित होकर उसका निरीक्षण किया। सरदार-स्कूल के प्रांगण में पूज्य कालूगणी ने एक साथ बाईस भाई-बहनों का दीक्षा-संस्कार सम्पन्न किया। यह एक विशेष संयोग की बात थी कि जयपुर-नरेश मानसिंहजी और जोधपुर-नरेश उम्मेदसिंहजी ने वायुयान में आसीन होकर दीक्षा का कार्यक्रम देखा। जयपुर-नरेश और जोधपुर-नरेश दीक्षा का कार्यक्रम देखने आए थे, इस बात की जानकारी किसी को नहीं थी। श्रावक मालमसिंहजी मुरड़िया को पता लगा तो उन्होंने पूज्य कालूगणी के दर्शन कर उक्त घटना की अवगति दी। इस प्रसंग से आठवें गीत का प्रारंभ हुआ है। दीक्षा के बाद कालूगणी ने जालोरी दरवाजे से शहर में प्रवेश किया। उनके साथ नवदीक्षित साधु-साध्वियों का समूह देखकर दर्शकों ने भगवान महावीर के युग का स्मरण कर अपने आप में धन्यता का अनुभव किया। जोधपुर का चातुर्मासिक प्रवास सानन्द सम्पन्न हुआ। वहां कालूगणी को विशेष प्रसिद्धि मिली। पुण्यवान के पग-पग निधान होते हैं, यह कहावत चरितार्थ हो गई। जोधपुर से कांठा की ओर विहार हुआ। कांठा एक ऐसा संभाग है, जहां स्थान-स्थान पर बबूल के कांटे बिखरे हुए हैं और अरहट के कुएं चलते रहते हैं। घाटों की धरती वाला मेवाड़ कांठा संभाग का पड़ोसी है। पहाड़ी धरती पर धव, खदिर, पलास आदि वृक्ष खड़े हैं। वहां कुछ विशेष प्रकार के कूप होते हैं, जो तूंडिया कुआं कहलाते हैं। गेहूँ और ज्वार की अच्छी फसल होती है तथा नदी एवं नालों-खाळों की भरमार है। कांठा संभाग में परिभ्रमण करके पूज्य कालूगणी साधु-साध्वियों के परिवार के साथ मर्यादा-महोत्सव करने के लिए सुधरी पहुंचे। वहां के ठाकुर अगवानी ३० / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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