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________________ तीसरे गीत में पूज्य कालूगणी ने शुभ मुहूर्त देखकर मरुधर की यात्रा का प्रारंभ किया। उस यात्रा में उनके सहवर्ती साधु-साध्वियों की विशेषताओं का बहुत सुन्दर ढंग से विश्लेषण किया गया है। इससे कालूगणी की व्यक्तित्व-निर्माण-कला, साधु-साध्वियों की गुणवत्ता और आचार्य तुलसी की प्रखर प्रमोद भावना की एक साथ अभिव्यक्ति हो रही है। चतुर्थ गीत में डीडवाना से पचपदरा तक की यात्रा का वर्णन है। इस यात्रा में कालू नामक गांव में दिगम्बर लोगों के बीच कालूगणी का व्याख्यान हुआ। प्रसंगवश प्रकरण चला कि स्त्री भी मोक्ष की अधिकारिणी है। इस बात पर दिगम्बर लोगों ने आपत्ति उठाई। पूज्य कालूगणी ने दिगम्बरों द्वारा मान्य ग्रंथ गोम्मटसार के आधार पर प्रमाणित कर दिया, फिर भी कुछ मताग्रही लोगों ने उसको सहजता से मान्य नहीं किया। उनके द्वारा अभिव्यक्त आक्रोश की आग कालूगणी के उपशम रस से स्वतः शांत हो गई। पचपदरा में संघ से बहिष्कृत पांच साधुओं ने धर्मसंघ की निन्दा कर बहुत लोगों को भ्रान्त बना दिया था। कालूगणी ने सारी स्थिति का आकलन किया और उनके द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों का निराकरण कर लोगों को पुनः सन्मार्ग दिखाया। गुरुदेव के थोड़े-से प्रयास से भ्रम का अन्धकार दूर हो गया। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश में जुगनू का कोई अस्तित्व नहीं रहता, वैसे ही पूज्य कालूगणी के पदार्पण से टालोकर साधु अस्तित्वविहीन-से हो गए। पांचवें गीत में बालोतरा, जसोल, असाड़ा, समदड़ी आदि क्षेत्रों में उपकार करते हुए कालूगणी के जोधपुर पधारने का वर्णन है। कालूगणी के स्वागत में श्रावक समाज का उत्साह, स्वागत-जुलूस और उनकी गुणवत्ता सहज साहित्यिक भाषा में अभिव्यक्त हुई है। गुणतीस साधुओं और अट्ठाईस साध्वियों के साथ कालूगणी चातुर्मास करने के लिए जोधपुर के जाटावास मोहल्ले में पहुंच गए। छठे गीत में जोधपुर-चातुर्मास के प्रथम तीन महीनों की संक्षिप्त झाँकी है। आश्विन महीने में उदयपुर से स्पेशल ट्रेन आई। कालूगणी को मेवाड़ पधारने की प्रार्थना की गई। कार्तिक महीने में दीक्षा का प्रसंग उपस्थित हुआ। दीक्षार्थियों की भीड़ देखकर विरोधी लोग ईर्ष्या से उद्विग्न हो गए। उन्होंने बालदीक्षा के नाम पर भयंकर विरोध करना शुरू कर दिया। उस संदर्भ में कुछ व्यक्ति पूज्य कालूगणी से मिले। उन्होंने बालदीक्षा पर कुछ आपत्तिणं उपस्थित कीं। पूज्य कालूगणी ने शान्तभाव से उनके द्वारा प्रस्तुत की गई आपत्तियों का निराकरण किया और संत ज्ञानेश्वर, शंकराचार्य, प्रह्लाद आदि उदाहरणों से बालकों की योग्यता प्रमाणित कर तेरापंथ की दीक्षापद्धति का निरूपण किया। कालूयशोविलास-२ / २६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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