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________________ कुंदनमलजी बोले- 'सुखलालजी! तेला तो ठीक ही हो गया, चोला कर लूं।' चोले से पंचोला, छह, सात, संख्या का क्रम बढ़ता ही गया। आखिर तेंतीस दिन की तपस्या के बाद उन्होंने पारणा किया। कालूगणी के एक इशारे ने तीन का तेंतीस कर दिया। यह गुरु के प्रति दृढ़ आस्था की निष्पत्ति है। १०७. मुनि केवलचंदजी का जनम सरसा के नौलखा परिवार में हुआ। आर्थिक दृष्टि से संपन्न उनके परिवार का व्यावसायिक संबंध दार्जिलिंग से था। केवलचंदजी अपने दो पुत्रों (मुनि धनराजजी, मुनि चंदनमलजी) और एक पुत्री (साध्वी दीपांजी) के साथ संसार से विरक्त हो गए। वे चारों एक साथ दीक्षित होना चाहते थे, पर व्यापार संबंधी झंझट में विलंब की संभावना से उन्होंने अपनी पुत्री और पुत्रों को पहले दीक्षा की अनुमति दे दी। उनकी दीक्षा छह मास बाद में हुई। मुनि केवलचंदजी को दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ रखने के लिए मुनि धनराजजी और चंदनमलजी की बड़ी दीक्षा छह मास बाद हुई। प्रायः देखा जाता है कि पुत्र और पुत्री के साथ दीक्षित होने वाले माता-पिता अपने साधु-जीवन में भजन-भाव में अधिक रस लेते हैं। मुनि केवलचंदजी इसके अपवाद रहे। उन्होंने अपने जीवन में काफी तपस्या की और लेखनकार्य बहुत किया। इन्होंने लिपिकला का अभ्यास मुनि अमीचंदजी के पास किया था। वे सुबह से शाम तक लिखते रहते थे। मुनि तुलसी आदि कई संत उनके लेखन के सन्दर्भ में विनोद के लहजे में कहते- 'केवल प्रेस चल रही है।' ___मुनि केवलचंदजी धर्मसंघ और संघपति के प्रति गहरी निष्ठा रखते थे। धर्मसंघ और संघीय मर्यादा की अवहेलना उनसे सहन नहीं होती थी। धर्मसंघ की थोड़ी भी उतरती आलोचना करनेवालों को वे कड़ा जवाब देते थे। जीवन के सान्ध्यकाल में वे एक बीमारी से घिर गए। 'खंधक मुनि' के खाल उतारने की घटना हम पढ़ते और सुनते हैं। मुनि केवलचंदजी के भी बीमारी से पूरे शरीर की चमड़ी उतर गई। उस वेदना को उन्होंने समभाव से सहन किया। मुनि धनराजजी उस समय मुनि केवलचंदजी के साथ ही थे और मुनि चंदनमलजी अग्रगण्य के रूप में हिसार चातुर्मास बिता रहे थे। अस्वस्थ मुनि केवलचंदजी की सेवा करने के लिए वे चातुर्मास में ही हिसार से चलकर सिरसा पहुंचे। दोनों बंधु मुनि उनकी सेवा में विशेष रूप से संलग्न रहकर उन्हें मानसिक समाधि देते रहे। उनकी जीवन-यात्रा की संपन्नता सिरसा में ही हुई। १०८. डालगणी ने अपने अंतिम समय में साध्वीप्रमुखाश्री जेठांजी के विषय में एक संकेत किया था। कालूगणी ने उस संकेत को गहराई से पकड़ लिया। परिशिष्ट-१ / ३३३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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