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________________ आचार्यश्री डालगणी ने उस रात को लगभग दो बजे सब संतों को संबोधित कर कहा- 'यतिजी ने जिस प्रकार के शब्द कहे हैं, अब बीदासर में चातुर्मास होना कठिन प्रतीत होता है।' बीदासर-निवासी शोभाचंदजी बैंगानी उस समय वहीं सामायिक कर रहे थे। उन्होंने यह बात सुनी। प्रातःकाल बैंगानी, सिंघी, चोरडिया आदि परिवारों के अनेक चिंतनशील व्यक्तियों ने परामर्श कर यह तय किया कि यतिजी अब बीदासर छोड़कर चले जाएं, तो अच्छा रहे। पर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। बीदासरवासियों ने चिन्तनपूर्वक उनका असहयोग करना शुरू कर दिया। इसके बाद यति अगरचंदजी उपाश्रय बन्द कर तेला (तीन दिन का उपवास) करके बैठ गए और बोले-'कोई भी यहां आएगा, उसे मैं अपने मंत्रबल से चिड़िया बना उड़ा दूंगा।' ___ बीदासर के श्रावकों ने सुजानगढ़ पहुंचकर नाजिम सीतारामजी व्यास को इस घटना के संबंध में पूरी जानकारी दी तथा वकील के द्वारा दरख्वास्त लिखाकर पुलिस सुपरिंटेंडेंट मीर साहब तक पहुंचा दी। मीर साहब दूसरे दिन आठ बजे बीदासर पहुंचे। वे यतिजी को उपाश्रय से निकालकर खूबचंदजी दूगड़ के नोहरे में ले गए और वहां लोगों से बयान लिए। छोटूलालजी और शिवजीरामजी बैंगाणी ने बयान दिया। डी. एस. पी. महोदय ने उनके बयान में सचाई की बात कही, तब अगरचन्दजी घबरा गए और बीदासर छोड़कर जाने के लिए तैयार हो गए। सरकारी अधिकारियों तथा समाज के वरिष्ठ श्रावकों की साक्षी से राजीनामा लिखवाकर उनको बीदासर से ग्यारह मील दूर सांडवा पहुंचा दिया गया। दूसरी घटना वि. सं. १६६८ की है। उस समय आचार्यश्री कालूगणी बीदासर प्रवास कर रहे थे। यति गणेशजी आचार्यश्री के साथ धर्मचर्चा करने गए। धर्मचर्चा में निरुत्तर होने के कारण वे पंचायती के नोहरे में कुछ बोल नहीं पाए, पर अपने उपाश्रय में पहुंचकर ऊटपटांग बोलने लगे। खींवकरणजी, जयचन्दलालजी, छोटूलालजी, शिवजीरामजी बैंगानी आदि कई श्रावक मुकाबला करने गए तो उन्होंने ऊपर चढ़कर कपाट बन्द कर लिया। कालूगणी ने श्रावकों को समझाकर अपनी ओर से शांत रहने का निर्देश दिया। कालूगणी के निर्देशानुसार उन्होंने मुकाबले की बात छोड़ दी, किन्तु स्थानीय ओसवाल सभा ने एक निर्णय लिया कि कोई भी व्यक्ति उपाश्रय की सीढ़ियों पर पांव नहीं देगा। इस निर्णय से उत्तेजित होकर गणेशजी ने सुजानगढ़ पहुंचकर दावा कर दिया कि ये लोग मुझे मारने आए थे और हमारे पूजन में रखी हुई पचीस स्वर्ण मुद्राएं उठाकर ले गए। उस संदर्भ में हुलासमलजी, खींवकरणजी, परिशिष्ट-१ / ३३१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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