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________________ उसे समझना कठिन था । इसलिए सारस्वत का पूर्वार्द्ध और चन्द्रिका का उत्तरार्द्ध, इस प्रकार दो संयुक्त व्याकरणों का क्रम प्रारंभ हुआ। वे दोनों व्याकरण अपूर्ण थे, अतः उनको भी स्थायित्व नहीं मिल पाया। उनके बाद हैमशब्दानुशासन का अध्ययन शुरू हुआ। वह व्याकरण पूर्ण था, पर उसकी प्रक्रिया न होने से नए विद्यार्थियों के लिए समस्या बन गया । इस परिस्थिति में कालूगणी ने यह निर्णय किया कि उपलब्ध व्याकरणों में जो कमियां या जटिलताएं हैं, उन्हें ध्यान में रखकर एक नया व्याकरण तैयार कराना चाहिए। इसी बीच 'विशालशब्दानुशासन' नामक एक और व्याकरण उपलब्ध हो गया । आचार्यश्री कालूगणी ने मुनिश्री चौथमलजी को नया व्याकरण तैयार करने का कार्यभार सौंपा। आचार्यश्री का निर्देश पाते ही मुनिश्री काम में जुट गए। कठिन परिश्रम, आंतरिक लगन और स्थिर अध्यवसायों के योग से 'भिक्षुशब्दानुशासन' नामक व्याकरण का उद्भव हुआ । पण्डित रघुनंदनजी ने इसकी बृहद्वृत्ति तैयार कर व्याकरण ग्रंथ को परिपूर्णता दी। इस ग्रंथ का सबसे पहले अध्ययन करने वाले थे -मुनि तुलसी और उनके सहपाठी मुनि । भिक्षुशब्दानुशासन में प्रवेश पाने के लिए एक प्रक्रियाग्रंथ की अपेक्षा अनुभव हुई तो मुनि चौथमलजी ने इस कार्य को भी तत्परता से पूरा कर दिया। कालुकौमुदी नामक प्रक्रिया को पढ़ने के बाद भिक्षुशब्दानुशासन के सूक्ष्म रहस्यों को ज्ञात करने में अधिक कठिनाई नहीं होती । व्याकरण ग्रंथ के निर्माण में जितना समय लगा, उस अवधि में अध्ययनशील पचीसों साधु-साध्वियां व्याकरण पढ़े बिना रह गए। इस एक क्षति के बावजूद अपने संघ का एक व्याकरण तैयार हो गया, जो सरल और प्रशस्त होने के साथ-साथ व्यवस्थित भी है । 1 ६६. तेरापंथ धर्मसंघ शिक्षा के साथ कला के क्षेत्र में भी एक उदाहरण है। आचार्यश्री भिक्षु स्वयं कलाप्रेमी थे, पर उस समय उन्हें संघ की मर्यादाओं को समझाने और व्यवस्थाओं को जमाने में पर्याप्त श्रम और समय का व्यय करना पड़ा। जयाचार्य के युग में कला को अभ्युदय का जो अवसर मिला, वह कालूगणी के समय तक विकास की ऊंचाइयों तक पहुंच गया । तेरापंथ धर्मसंघ की कुछ कलाकृतियां बेजोड़ हैं। इनमें रजोहरण - निर्माणकला, सिलाई, रंगाई, लिपिकला आदि उल्लेखनीय हैं। वैसे कला के क्षेत्र में अनेक साधु-साध्वियों ने अहमहमिकया ग की है, फिर भी कुछ कार्यों में साध्वियों की कला विशिष्ट है । कालूगणी के समय की कुछ कलाकार साध्वियों का नामोल्लेख यहां किया जा रहा है -- ३२६ / कालयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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