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________________ नहीं, इस परीक्षण में कभी विसंवाद नहीं होता । ६३. वि. सं. १६८३ में आचार्यश्री कालूगणी का चातुर्मास गंगाशहर था । उसी वर्ष उन्होंने मुनि गणेशमलजी, जीवनमलजी, हस्तीमलजी और मुलतानमलजी (ये चारों संसार - पक्ष में पिता-पुत्र थे) का एक नया दल बनाकर कालू, लूणकरणसर की तरफ विहार का निर्देश दिया। मुनि गणेशमलजी उधर पहुंचे। मुनि मुलतानमी बालक साधु थे । वे चार-पांच साल कालूगणी की सन्निधि में रहकर गए थे। वहां उनका मन नहीं लगा । गुरुकुलवास की मधुर स्मृतियों ने उनको बेचैन कर दिया। कालूगणी को इस स्थिति की जानकारी मिली तो उन्होंने सब संतों को गंगाशहर बुला लिया और उस वर्ष वहीं आसपास रहने का आश्वासन देकर उन्हें समाधिस्थ कर दिया । मुनि गणेशमलजी अच्छे खानदानी संत थे । उनका शरीर - संहनन बड़ा मजबूत था । वे किसी का हाथ पकड़ लेते तो उसे छुड़ाना कठिन हो जाता । धर्मसंघ के वे परम भक्त थे और कालूगणी के पूर्ण विश्वासी मुनियों में से थे । कालूगणी के समय में जब रिखिराम - लच्छीराम के साथ जिल्लाबंदी की संभावना से दयारामजी को वि.सं. १६६० में आचार्यश्री के दर्शन करने का आदेश हुआ, तब उन्हें मुनि गणेशजी के साथ आने का निर्देश मिला था । आखिरी वर्षों में वे खाटू स्थिरवासी रहे और समाधिपूर्वक आराधक पद प्राप्त किया । इसी प्रकार मुनि केवलचन्दजी, धनराजजी और चन्दमनलजी (ये भी संसार पक्ष में पिता-पुत्र थे) को पड़िहारा भेजा गया। वहां मुनि चन्दनमलजी का मन नहीं लगा। वे दिनभर खिन्न रहे और गुरुकुलवास के सुखद प्रसंगों को याद कर उदास हो गए। कालूगणी को उनकी मनःस्थिति का पता चला तो उनको भी अत्यन्त वात्सल्य भाव से संभालकर मानसिक स्थिरीकरण का पथ दिखलाया । ६४. बाल-मुनियों के जीवन-निर्माण की दृष्टि से कालूगणी सदा जागरूक रहते थे। उनका मधुर वात्सल्य निराशा में आशा का दीप जला देता और अन्तरविरोध को विनोद में रूपांतरित कर देता। ऐसे एक नहीं, अनेक प्रसंग साधु-साध्वियों की स्मृति में हैं। यहां एक प्रसंग का उल्लेख किया जा रहा है । घटना वि. सं. १६८० जयपुर - चातुर्मास की है। मुनि धनराजजी और मुनि चंदनमलजी उस समय नवदीक्षित मुनि थे। मुनि धनराजजी बड़े भाई थे, अतः वे मुनि चंदनमलजी को सिखाते थे । एक दिन वे 'अभिधानचिन्तामणि' कोश कंठस्थ कर रहे थे। प्रतिदिन के क्रमानुसार पहले मुनि धनराजजी श्लोक बोलते और उसके बाद मुनि चंदनमलजी । उस दिन मुनि चंदनमलजी मौन होकर बैठ गए। मुनि परिशिष्ट-१ / ३२३
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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