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________________ को पांच-पांच परिष्ठापन और मुनि भीमराजजी को इक्यावन परिष्ठापन का पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया । 1 ६१. आचार्यश्री कालूगणी व्यक्ति-निर्माण की दृष्टि से कुशल शिल्पी थे वे जिस व्यक्ति को योग्य समझते, उसमें किसी प्रकार की त्रुटि का आभास होता तो कड़ाई के साथ उसका प्रतिकार करते । कड़ाई के पीछे दृष्टिकोण एक ही था - गलती का सुधार । घटना राजलदेसर के समीपस्थ किसी देहात की है। वहां गढ़ में कालूगणी विराज रहे थे। मुनि तुलसी आदि कई बालमुनि गुरुदेव के पास अध्ययन कर रहे थे। उस समय मुनि भीमराजजी चंदन मुनि (सरसा) को साथ लेकर कालूगणी के निकट आए और शिकायत के लहजे में बोले - 'गुरुदेव ! इसकी बुद्धि अच्छी है, यह अध्ययन कर सकता है । पर अपनी मनमानी अधिक करता है । कोई कुछ भी कहे, यह अपनी जिद्द नहीं छोड़ता ।' कालूगणी चन्दन मुनि में छिपे व्यक्तित्व को निखारना चाहते थे । उन्होंने उनको जिद्दी स्वभाव के लिए दण्ड कुछ भी नहीं दिया, पर उपालंभ इतना कठोर दिया कि पास में खड़े अन्य मुनि भी कांपने लगे । उपालंभ के साथ कालूगणी ने कहा- 'यदि तुम जिद्द नहीं छोड़ोगे तो मैं तुझे अध्ययन के लिए कुछ नहीं कहूंगा।' कालूगणी के इन शब्दों से जादू का सा असर हुआ। अवस्था से बालक होने पर भी चंदन मुनि ने गुरुदेव की शिक्षा इतनी गंभीरता से ग्रहण की कि अपने जीवन का क्रम बदल लिया। गुरुदेव के कड़े उपालम्भ में निहित सुधार की भावना ने स्वभाव में कितना बड़ा परिवर्तन ला दिया, यह उल्लेखनीय है । ६२. मुनि कुंदनमलजी धुन के धनी और अध्ययनप्रिय व्यक्ति थे । अध्ययन में अभिरुचि होने पर भी वे इस दिशा में विकास नहीं कर पाए। क्योंकि वे सभी स्तरों के विद्यार्थी साधुओं के साथ पढ़ना सीखना शुरू कर देते, पर उसमें स्थिर नहीं रहते। बुद्धि उनकी इतनी तीव्र थी कि एक दिन में सौ श्लोक याद कर लेते। पर जितनी तीव्रता से याद करते, उतनी ही शीघ्रता से भूल जाते। परिश्रम भी वे बहुत करते थे, पर अस्थिरता के कारण ठोस अध्ययन नहीं कर पाते। कालूगणी उनकी इस वृत्ति से पूरे परिचित थे । वे जब कभी कोई नई चीज प्रारंभ करने कालूगणी के पास जाते, तो वे कहते - 'प्रारंभ भले ही करो, पूरा होना कठिन है।' मुनि कुंदनमलजी कई बार कहते - 'गुरुदेव ! आप पहले ही फरमा देते हैं, इसलिए मेरा काम पूरा नहीं होता । आप कृपा कर इस बार तो ऐसा न फरमाएं ।' कागणी कुछ कहते या नहीं, पर वे कौन-सा अध्ययन कर पाएंगे और कौन-सा ३२२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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