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________________ परिश्रम किया, किंतु वह नहीं मिल पाई। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वे गोगुंदा (मोटेगांव) पधारे। वहां के श्रावकों से आपको लगभग २३०० पन्नों की भगवती सूत्र की एक प्रति उपलब्ध हुई थी। कालूगणी के समय में संघ का पुस्तक भण्डार काफी समृद्ध हो गया। उस समय केवल भगवती सूत्र की बीसों प्रतियां प्राप्त थीं। ७५. भयंकर विरोध, संघर्ष और कठिनाइयों के बावजूद आचार्यश्री भिक्षु अपने संकल्प पर दृढ़ थे। उनकी सत्यनिष्ठा, सिद्धांतवादिता और संकल्पशक्ति ने लोगों का मन जीतना शुरू कर दिया। एक दिन कुछ भाइयों ने निवेदन किया-'गुरुदेव, अमुक-अमुक क्षेत्रों में आपके प्रति अच्छी भावना है। आप वहां साधुओं को भेजें तो वे लोग तत्त्व समझ सकते हैं। ____ आचार्य भिक्षु ने उक्त प्रसंग में कहा-'भाई! जंगल में चंदन के वन बहुत हैं। अच्छे कारीगर हों तो अच्छे-से-अच्छे कपाट, पट्ट आदि तैयार हो सकते हैं। काष्ठशिल्प विकसित हो सकता है, पर कारीगर (शिल्पकार) ही न हों तो क्या किया जाए? अभी हमारे पास साधु इतने कम हैं कि हम इतने क्षेत्रों की संभाल नहीं कर सकते।' आचार्यश्री भिक्षु ने जो कमी अनुभव की, आचार्यश्री कालूगणी के समय में उसकी पूर्ति हो गई। कालूगणी के शासन में संतों की संख्या के साथ सिंघाड़ों (दलों) की संख्या में भी वृद्धि हो गई। ७६. कालूगणी के युग में प्रथम बार सुदूर प्रदेशों की यात्रा करने वाले सन्तों का विवरण निम्नांकित सोरठों में पढ़ें १. शुभ संवत संभाल, उगणीसै सित्यासियै। ___ भेज्या पूज्य कृपाल, खानदेश घासी मुनी।। २. विचरी देश बरार, मुगलाई मन म्हालतो। ___ बोलारम बाजार, नय्यासिय पावस कियो।। ३. बोम्बे शहर सुजाण, सूरजमल मुनि पाठव्यो। नय्यासिय पहिचाण, कालू गुरु करुणा करी। ४. निब्बै विक्रम साल, सी. पी. जब्बलपुर लगे। मुनिवर चंपालाल, नूतन नाम कमावियो।। ५. विक्रम बाणव साल, पूना में पहुंच्यो प्रवर। कानमल्ल मुनि चाल, गुरु कालू आदेश स्यूं।। ७७. आचार्यश्री कालूगणी के समय में साधु-साध्वियों में हुई विशेष तपस्या का यंत्र ३१४ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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