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कोई विशिष्ट योग था। उसे देखकर एक प्रबुद्ध ज्योतिषी ने बताया- 'यह कुण्डली जिस व्यक्ति की है, उसके ऊपर बारह बरस से अधिक कोई मालिक नहीं रह सकेगा और एक दिन वह स्वयं अधिकारी बन जाएगा।' ___ उस समय ज्योतिषी की बात पर किसी ने विश्वास किया या नहीं, पर आगे जाकर वह सही रूप में प्रमाणित हो गई।
७०. आचार्यश्री कालूगणी के समय हुई दीक्षाओं का यंत्रकुल दीक्षा अविवाहित विवाहित स्त्री-पति स्त्री-पति गण बाहर
युगल छोड़कर वियोग । संत सतियां संत सतियां संत सतियां संत सतियां संत सतियां संत सतियां
१५५ २५५ १०६ ८५ २२ २२ ३ २५ २४ १२३ ३५ १ ___४१० १६१ ४ ४ २८ १४७ ३६
७१. राजगृह में एक सार्थवाह था। उसके चार पुत्र और चार पुत्रवधुएं थीं। पुत्रवधुओं के नाम थे-उज्झिता, भोगवती, रक्षिता और रोहिणी। सार्थवाह वृद्ध हुआ। उसने घर की जिम्मेदारी संभलाने के लिए बहुओं का परीक्षण करना चाहा।
सार्थवाह ने एक विशाल भोज आमंत्रित किया। भोज के बाद परिजनों के समक्ष चारों बहुओं को पांच-पांच दाने चावल के दिए और कहा-जब मैं मांगू, तब लौटा देना।' बड़ी बहू ने चावल के दाने फेंक दिए। दूसरी ने ससुरजी का प्रसाद मानकर खा लिए। तीसरी ने एक डिबिया में उनको सुरक्षित रखा और चौथी ने अपने पीहरवालों के पास भेजकर उन पांच दानों की अलग से खेती करने को कह दिया।
एक-एक कर पांच वर्ष व्यतीत हो गए। सार्थवाह ने पुनः प्रीतिभोज बुलाकर बहुओं से चावल मांगे। बड़ी बहू ने कोष्ठागार से चावल के पांच दाने लाकर दिए। ससुर ने पूछा-'क्या ये वे ही चावल हैं?' वह बोली- 'उनको मैंने फेंक दिया था, ये दूसरे हैं। दूसरी बहू ने कहा-'उन चावलों को मैंने आपका प्रसाद मानकर खा लिया, दूसरे दाने तैयार हैं।' तीसरी ने अपनी डिबिया खोलकर ससुर को मूल के चावल सौंप दिए। अब छोटी बहू की बारी थी। वह बोली-'ससुरजी! आपके दिए हुए पांच चावल पांच वर्षों में बहुत बढ़ गए। उनके लिए कुछ वाहनों की व्यवस्था कीजिए।
बहू के पीहर से चावल आ गए। सार्थवाह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अपनी सबसे छोटी बहू रोहिणी को घर की पूरी जिम्मेदारी सौंपी। तीसरी बहू रक्षिता
३१२ / कालूयशोविलास-२