SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को वंदना करो । युवाचार्य का नाम लेने की अपेक्षा नहीं है। उसके बाद सब संतों को दीक्षा - क्रम से नामोल्लेखपूर्वक वंदना करो । साध्वी किस्तूरांजी का व्यामोह टूटा । आचार्यश्री कालूगणी और मंत्री मुनि के संयुक्त मार्गदर्शन ने सब साधु-साध्वियों को संघ की एक विशेष नीति से परिचित करा दिया। ५८. आचार्यश्री भिक्षु ने तेरापंथ साधु संघ को आचारनिष्ठ, सुव्यवस्थित और संगठित बनाए रखने के लिए समय-समय पर अनेक विधि-विधानों का निर्माण किया, जिनको लिखत कहा जाता है । पहला लिखत वि.सं. १८३२ की साल और अंतिम लिखत वि.सं. १८५६ का लिखा हुआ है । बीच में अनेक लिखत लिखे गए। जयाचार्य ने उन सब विधानों को संकलित कर तथा स्वामीजी की शिक्षात्मक कृतियों का संदर्भ देते हुए उनका वर्गीकरण कर उसका नाम दिया - गणविशुद्धिकरण हाजरी | हाजरी इसका संक्षिप्त रूप है। इसकी भाषा राजस्थानी है । प्राचीन समय में हाजरी का वाचन प्रतिदिन होता था । उसके बाद डालगणी और कालूगणी के समय प्रतिदिन 'लेखपत्र' पर हस्ताक्षर करना तथा सप्ताह में दो बार (सोमवार और गुरुवार) हाजरी वाचन का क्रम चला। वाचन का कार्यक्रम मध्याह्न में होता था। मुनि तुलसी जिस दिन युवाचार्य बने, उस दिन गुरुवार था । आचार्यश्री कालूगणी अस्वस्थता के कारण उस समय हाजरी का वाचन कर नहीं सकते थे । इसलिए युवाचार्य ने मध्याह्न के समय हाजरी का वाचन किया । (विशेष जानकारी के लिए देखें 'तेरापंथ का इतिहास', पृ. ३३८, ३३६) ५६. कालूगणी के अस्वास्थ्य का संवाद पाकर साधु-साध्वियों का चिंतित होना स्वाभाविक था । यद्यपि आचार्यश्री की सेवा में सेवाभावी साधु-साध्वियों की कमी नहीं थी, पर दूरी में चिंता अधिक बढ़ जाती है । आचार्य की अस्वस्थता में चातुर्मास में भी विहार किया जा सकता है, इस शास्त्रीय परंपरा के अनुसार उस समय कई क्षेत्रों से साधु-साध्वियां गंगापुर पहुंच गए। उन सबका नामांकन यहां किया जा रहा है 1 ग्राम कांकरोली राजनगर पुर पहुना पीथास बागोर आमेट नाम मुनि सुखलालजी, पूनमचंदजी, उदयचंदजी मुनि धनरूपजी, हस्तीमलजी साध्वी केसरजी का सिंघाड़ा साध्वी केसरजी (छोटा) का सिंघाड़ा साध्वी मधुजी का सिंघाड़ा साध्वी जुवारांजी का सिंघाड़ा मुनि फूलचंदजी परिशिष्ट-१ / ३०७
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy