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________________ इसके अतिरिक्त ‘मोटेगांव' आदि कुछ क्षेत्रों से भी साधु-साध्वियों ने विहार कर दिया था, पर कालूगणी द्वारा मना कर देने पर वे सब गंगापुर नहीं पहुंच सके। ६०. वि. सं. १६८३ लाडनूं मर्यादा - महोत्सव के अवसर पर मुनि तुलसी को शीत - ज्वर हो गया । बुखार होने के कारण वे सो रहे थे। रात्रि में लगभग दस बजे मुनि मूलचंदजी (बीदासर) उनके पास पहुंचे और बोले- 'अब तुम्हारी तबीयत कैसी है? बुखार उतरा या नहीं ?' मुनि तुलसी ने पूछा- 'आप इस समय क्यों पधारे?' मुनि मूलचंदजी ने उत्तर दिया- 'मुझे श्रीजी महाराज ( कालूगणी) ने भेजा है। उन्होंने फरमाया कि मैं तुम्हें पूछकर पुनः तुम्हारी स्थिति के बारे में उन्हें निवेदन करूं । देख, तुम पर कालूगणी की कितनी मर्जी है । ' कालूगणी की इस अप्रतिम कृपा ने मुनि तुलसी को अभिभूत कर दिया । ६१. वि. सं. १६८६ छापर में मुनि तुलसी के पांव में बबूल का कांटा लग गया। मुनि चौथमलजी आदि संतों ने शूल से खोदकर कांटा निकालने का प्रयास किया। कांटा काफी गहराई में था । उसे खोदा गया तो वह नीचे चला गया। पीड़ा अधिक होने से कांटा निकल नहीं सका । कालूगणी को इस बात का पता चला तब वे धरती पर कंबल बिछाकर बैठे और अपने घुटने पर मुनि तुलसी का पैर टिकाकर कांटा देखा। कांटा काफी गहरा था । खोदने में पूरी सावधानी न रखने के कारण वह अधिक गहरा चला गया था। कालूगणी ने फरमाया-'मैं कांटा निकाल तो सकता था पर मुनि चौथमल इसे बिगाड़ दिया, इसलिए यह नहीं निकला ।' मुनि चौथमलजी ने मुनि तुलसी की ओर उन्मुख होकर कहा - 'तुम्हारा कांटा निकालने का काम हाथ में लिया तब यह पद मिला ।' कांटा निकले या नहीं, कालूगणी के मन में अपने शिष्य के प्रति जो सहज वात्सल्य था और उसे जिस प्रकार से अभिव्यक्ति मिली, वह इतिहास की विरल घटनाओं में से एक है। I ६२. वि. सं. १६८६ में कालूगणी बीदासर के पंचायती नोहरे में प्रवास कर रहे थे। मुनि तुलसी उनके साथ ही थे । एक दिन मुनि तुलसी के पेट में भयंकर दर्द हुआ। रात भर नींद नहीं आई, बेचैनी भी काफी रही । कालूगणी ने संतों को निर्देश दिया कि जब तक दर्द ठीक न हो, संत पास में बैठे रहें । प्रातःकाल नई पोलवाले कानमलजी बैंगानी ने नाड़ी देखकर कहा - ' नाड़ी की गति खराब है ।' कालूगणी को निवेदन किया गया। कालूगणी ने पंचमी समिति से लौटकर मुनि तुलसी को अपने पास बुला लिया। वहीं बिछौना कर सुलाया, ३०८ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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