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हूं।' सेठ ने उसको सम्पदा और सम्मान के साथ विदा किया। शहर पहुंचकर उसने घर के बारे में पूछताछ की। एक-दो दिन में सारी व्यवस्था करके उसने बाजार में लोगों को इकट्ठा कर कहा - 'मेरे पिताजी पर किसी का ऋण हो वह ब्याज सहित ले ले। कई व्यक्ति आए और उन्होंने अपना हिसाब पूरा किया। युवक की दूसरी घोषणा थी कि किसी भी व्यक्ति पर मेरे पिता का ऋण हो, वे अपना ऋण चुका दें।
युवक के सौहार्द की छाप लोगों पर पड़ चुकी थी अतः कर्जदार व्यक्ति भी आए और बोले - 'बाबू ! बहुत वर्ष हो गए, हम ब्याज नहीं दे सकते।' कुछ व्यक्ति मूल लौटाने में भी कठिनाई अनुभव कर रहे थे। युवक ने उन सबसे कहा- - 'मुझे पिछला हिसाब पूरा करना है। आपके पास हो तो दें अन्यथा सब-कुछ माफ।' युवक ने उदारतापूर्वक सबको माफ कर दिया। अब उसने अपने टूटे-फूटे मकान को तुड़वाकर दूसरा मकान बनवा लिया और पूरी व्यवस्था के साथ रहने लगा। शहर में उस युवक और उस सेठ की सहृदयता बहुत दिनों तक चर्चा का विषय बनी रही ।
सेठ ने एक अनाथ बालक को जो स्नेह, सौहार्द और अपनत्व दिया तथा रंक से रईस बना दिया, वह उल्लेखनीय है । ऐसी घटनाएं कभी-कभी ही घटित होती हैं।
५४. बादशाह का एक सेवा-निवृत्त वजीर आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था। अपने कार्यकाल में वह दूसरे लोगों को आर्थिक सहयोग दिया करता था। पर अब आय के स्रोत बंद हो जाने के कारण वह स्वयं काफी कठिनाई से काम चला रहा था। इस स्थिति में भी उसने अपने स्वाभिमान को सुरक्षित रखने के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया ।
वजीर के पास केवल वह पोशाक बची, जिसे पहनकर वह राजसभा में जाता था। उसको वह अब भी इसी काम में लेता था । घर की स्थिति अत्यंत नाजुक थी । इसलिए वह सब काम हाथ से करने लगा । आटा पीसने की चक्की तक उसने चलाई । पर अपनी गरीबी को प्रकट नहीं होने दिया ।
एक दिन बादशाह, वजीर के घर के आगे से गुजरा । वजीर को इस बात का पता नहीं था। वह अपने घर में चक्की पीस रहा था । बादशाह ने पूछा - 'यहां वजीर रहता था न?' 'हां, जहांपनाह!' एक अफसर ने उत्तर दिया । बादशाह ने अपनी सवारी रोकी और उस तरफ दृष्टिक्षेप किया। वजीर और बादशाह की आंखें मिलीं । वजीर की पलकें झुक गईं। बादशाह ने हाथ से संकेत कर पूछा - 'यह
३०४ / कालूयशोविलास-२