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निकाली जाती।
५३. प्राचीन समय में यातायात के साधन बहुत कम थे। उस समय लंबी यात्रा करने वाले व्यक्ति सार्थ लेकर जाते थे। एक रईस व्यक्ति जलयान के द्वारा विदेश यात्रा पर जा रहा था। उसने अपने शहर में घोषणा करवाई कि सेठजी यात्रा पर जा रहे हैं। कोई भी व्यक्ति उधर जाना चाहे, उसकी व्यवस्था सेठजी की तरफ से हो जाएगी। घोषणा सुनकर कई व्यक्ति आए और सेठजी के सार्थ में सम्मिलित हो गए।
__ कुछ व्यक्ति एक अनाथ बालक को लेकर सेठ के पास आए और बोले-'सेठ साहब! अपने घर में यह बच्चा अकेला है। माता-पिता की मृत्यु के बाद परिवार में कोई इसको संभालने वाला नहीं है। अपने समाज का लड़का है, आज रोटी का मोहताज बन रहा है। आप संभाल लें तो इसको आश्रय मिल जाए।'
सेठ ने लड़के को देखा। फटेहाल होने पर भी उसकी आंखों में चमक थी। सेठ ने उसको अपने पास रख लिया। नहलाने और अच्छे वस्त्र पहनाने के बाद उसका रूप-रंग भी निखर गया। अच्छा भोजन, अच्छा वातावरण, वरिष्ठ व्यक्तियों का संपर्क और सेठ का स्नेह बालक के व्यक्तित्व को उभारने लगा। बुद्धि उसकी अच्छी थी। सेठ के निर्देशानुसार वह व्यापार सीखने लगा। थोड़े ही दिनों में वह एक कुशल व्यवसायी बन गया। उसके आने के बाद सेठ के व्यापार में उत्तरोत्तर लाभ होता रहा। इससे सेठ के मन में बालक के प्रति आत्मीय भाव विकसित होता गया।
सेठ ने उस अनाथ बालक को अपने व्यापार में भागीदार बना लिया। पहले उसकी दो आना पांती रखी, फिर चार आना रखी और बाद में आधी पांती रख दी। अब वह बराबर का सेठ हो गया और बालक से युवा बन गया। एक दिन उसने अपने घर और परिवार के बारे में जिज्ञासा की। उसे बताया गया कि उसका छोटा-सा घर अमुक शहर में है, पर परिवार में कोई नहीं है। उसके मन में घर संभालने की भावना जगी। सेठ के पास जाकर उसने घर जाने की अनुमति मांगी। सेठ बोला-'यह घर तुम्हारा ही है। तुम्हारी इच्छा हो तो यहीं रहो।' युवक ने कहा-'आपकी कृपा ही मेरा जीवन है। यहां रहने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है। पर मैं सोचता हूं कि पुरखों का नाम रह जाए तो अच्छा है।'
युवक की आंतरिक इच्छा देख सेठ ने उसे देश जाने की अनुमति दे दी और कहा-'पूरा हिसाब कर लो।' युवक बोला-'हिसाब किससे कर लूं? आप मेरे लिए मां-पिता सब-कुछ हैं। अपने हाथ से उठाकर जो देंगे, मैं उसमें खुश
परिशिष्ट-१ / ३०३