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था। एक दिन उस घर में मेहमान आए । मालिक ने नौकर से दूध लाने के लिए कहा। नौकर तत्परता से चला। वह आधी दूर पहुंचा होगा कि लौट आया और बोला- 'दूध काली गाय का लाना है या चितकबरी का ? 'गृहस्वामी ने उत्तर दिया- 'किसी भी गाय का ले आओ।' वह चला और थोड़ी दूर जाकर फिर आ गया। इस समय उसका प्रश्न था - 'दूध बाखड़ी गाय का लाना है या सावड़ी (सद्यः प्रसूता) का ?' मालिक थोड़ा झुंझलाया और बोला- 'तुम्हें पहले से कह दिया किसी भी गाय का ले आओ।' नौकर आश्वस्त होकर चला, पर एक और जिज्ञासा ने उसको मालिक के सामने लाकर खड़ा कर दिया। उसने प्रश्न किया- 'अपने यहां एक गाय खोड़ी है और एक साझी (परिपूर्ण अंगों वाली) है, कौन-सी गाय के दूध की जरूरत है?'
मालिक अपने नौकर की इस वृत्ति से थोड़ा उत्तेजित हुआ । वह उसे कड़ी चेतावनी देते हुए बोला- 'यह प्रश्नों का सिलसिला बंद करो और दूध ले आओ । बार-बार आने-जाने की कोई जरूरत नहीं है। सीधे जाकर दूध ले आओ। मुझे दूध से मतलब है, न कि गाय से ।' अमथा सहमता हुआ-सा गया और कौन-सी गाय का चिंतन छोड़कर दूध का पात्र ले आया ।
४६. बीदासर-निवासी प्रसिद्ध सेठ शोभाचंदजी बैंगानी के सुपुत्र हणूतमलजी बैंगनी धार्मिक दृष्टि से जितने श्रद्धालु थे, सामाजिक दृष्टि से उतने ही उदार थे। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पारां बाई ( सरदारशहर निवासी संपतरामजी दूगड़ की बहन) भी आस्था और उदारता के क्षेत्र में एक उदाहरण थी। उन दोनों की प्रकृति में विशेष साम्य था । जो व्यक्ति उनके निकट संपर्क में रहे, उनका कहना है कि वैसी जोड़ी बहुत कम मिलती है ।
श्राविका पारां बाई की उदारता के संबंध में यह बताया जाता है कि कोई व्यक्ति उनके घर मकरध्वज जैसी कीमती दवा मांगने के लिए आ जाता और दवा घर में नहीं होती तो भी वे आनेवाले को मना नहीं करतीं । आगंतुक को बिठाकर वे पीछे की सीढ़ियों से किसी व्यक्ति को बाजार भेजकर दवा मंगा लेती थीं । उनके घर आकर कोई व्यक्ति खाली लौट जाए, यह उन्हें कभी स्वीकार नहीं
था ।
आगे जाकर उनकी संपन्नता कम हो गई, पर उदारता में कमी नहीं आई । सदा की भांति हजारों रुपयों का अतिरिक्त व्यय, किन्तु उसका कोई अभिमान नहीं। शहर में उनकी विशेष छाप थी । उदारता की भांति उस दंपति की शासन - भक्ति भी उल्लेखनीय है ।
२६८ / कालूयशोविलास-२