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________________ का परिणाम है। तुम सबल होते तो आज उस सेठ के घर तुम्हारी बारात जाती।' श्रेष्ठि-पुत्र यह बात सुन स्तब्ध रह गया। उसने सारी स्थिति की जानकारी की। सेठ द्वारा लिखित कागजात लेकर दौड़ा और उस हाथी के आगे जाकर खड़ा हो गया, जिस पर राजा सवार था। राजपुरुषों ने उसे वहां से हटाना चाहा, किंतु वह बोला, मुझे इसी समय महाराज से आवश्यक बात करनी है। विक्रमादित्य को जानकारी मिली तो उन्होंने कहा-'इस बच्चे को हाथी पर चढ़ा दो, मैं इसकी बात सुनूंगा।' राजा की आत्मीयता पाकर उसका मनोबल पुष्ट हो गया। वह बोला-'राजन! हमारे साथ कोई अन्याय होता है तो हम आपसे न्याय की मांग करते हैं। आप स्वयं अन्याय करनेवालों का साथ देंगे तो मेरे-जैसे साधारण लोगों को त्राण कहां से मिलेगा? आप जिस लड़की के साथ शादी करने जा रहे हैं, वह मेरी मांग है। बस, मेरा इतना ही निवेदन है, अब आप जैसा उचित समझें, वैसा करें। विक्रमादित्य ने इस सूचना में रस लिया। घटना की पूरी जानकारी की, कागजात देखे और तत्काल लड़की के पिता को अपने पास बुलाया। पिता पहले से ही डर रहा था कि कहीं कोई रहस्य खुल न जाए। राजा के साथ उसी लड़के को देख वह सहम गया। राजा ने कागजात सेठ के सामने रखकर पूछा-'ये हस्ताक्षर किसके हैं।' सेठ को काटो तो खून नहीं। उसकी आंखें नीची हो गईं। वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहा। राजा ने सेठ को संबोधित करते हुए कहा-'समय ने आपके मन को भी बदल दिया। लगता है कि आपकी दृष्टि में धन ही प्रतिष्ठा की वस्तु है। अब यह शादी मेरे साथ नहीं, इस लड़के के साथ होगी। आपको धनी पिता के पुत्र को अपना जामाता बनाना है तो मैं इसे पुत्र रूप में स्वीकार करता हूं।' राजा ने अपनी पोशाक उस लड़के को पहना दी। धूमधाम से विवाह-संस्कार संपन्न हुआ। सेठ ने अपनी भूल महसूस की। राजा ने प्रजा को न्याय दिया। लड़के ने अपना अधिकार पाया और लड़के की माता अपने पुत्र की सूझबूझ से खुश हो गई। ___भविष्य में ऐसी अवांछनीय घटना और न घट जाए, इस बात को ध्यान में रखकर राजा ने निर्देश दिया-‘आदर्श विवाह वह होगा जो अपने-अपने वर्ण में किया जाएगा।' विक्रमादित्य उज्जयिनी के प्रभावशाली राजा थे। विक्रम संवत इन्हीं के नाम पर चल रहा है। २६२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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