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कही गई सारी बात बता दी । चाचा बड़े दूरदर्शी थे । उन्होंने कहा - 'तुम अपने हाथ से ही गठरी खोलो।' गठरी खुली। चाचा ने उन रत्नों का अंकन किया और उसको निर्देश दिया - 'पुत्र ! ये रत्न बड़े कीमती हैं। अभी अपने सामने कोई ग्राहक नहीं है, इसलिए इन्हें ले जाकर रख दो । अवसर आने पर इनको बेच देंगे ।'
बच्चा गठरी लेकर घर आया और अपनी मां को सारी स्थिति बता दी। माता अपने रत्नों को कीमती समझती ही थी । अपने देवर का समर्थन पाकर वह बहुत खुश हुई। अब उसने अपने पुत्र के भोजन, अध्ययन, मनोरंजन आदि की समुचित व्यवस्था खुले दिल से की। लड़का प्रतिभासंपन्न था। थोड़े ही समय में वह स्कूली शिक्षा में निष्णात होकर ब्यवसाय से जुड़ गया। बालक की व्यावसायिक प्रतिभा भी असाधारण थी। जवाहरात के काम में बह अच्छा पारखी
बन गया ।
चाचा ने उपयुक्त समय देखकर अपने भतीजे से रत्नों की वह गठरी मंगाई । लड़के ने अपनी मां से जवाहरात मांगे। मां ने तिजोरी खोली, मंजूषा खोली और बड़े यत्न से रखी हुई एक गठरी निकालकर पुत्र के हाथ में थमा दी।
लड़के को याद आया, चाचाजी ने कहा था कि रत्न बहुत कीमती हैं । वह उन्हें देखने का लोभ संवरण नहीं कर सका। उसने गठरी खोलकर रत्नों को देखा और पहली बार दृष्टिक्षेप में ही पूरी परख हो गई। वे रत्न नहीं, रंग-बिरंगे कांच के टुकड़े थे। लड़के ने गठरी फेंक दी। मां बोली- 'अरे मूर्ख ! यह क्या कर रहा है?' लड़का बोला-‘मां! इनकी कीमत पांच कौड़ी भी नहीं, ये तो कांच के टुकड़े हैं।' आचार्यश्री भिक्षु ने इस संदर्भ को अभिव्यक्ति देते हुए कहा
काच तणो देखी मणकलो, अणसमझू हो जाणै रतन अमोल । नजर पड़ै जो सर्राफ की, कर देवै हो तिण रो कोड्यां मोल ।।
मां का मन आहत हुआ । स्त्रीसुलभ संदेह की प्रेरणा से उसने पूछा- 'बेटा, उस दिन तुम इस गठरी को चाचाजी के पास ले गए थे । उन्होंने बदल तो नहीं लिया ?' लड़का मुसकराता हुआ बोला- 'मां ! चाचाजी बहुत समझदार हैं। वे जानते थे कि उन पर कोई आरोप आ सकता है, इसलिए उन्होंने इस गठरी का स्पर्श ही नहीं किया। मैंने अपने हाथ से इसे खोलकर दिखाया था । ' यह सुनकर मां आश्वस्त हुई ।
लड़का सीधा अपने चाचाजी के पास पहुंचा और बोला- 'चाचाजी ! उस दिन मैं आपके पास जो गठरी लाया था, उसमें तो कोरे कांच के टुकड़े हैं। आपने उनको कीमती कैसे बताया ?' चाचा गंभीर होकर बोले- 'बेटा! मैं जानता था कि
२८८ / कालूयशोविलास-२