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________________ मन शुध करनै भजिये भवियण ते पामै कल्याणं।। १. अनन्त ज्ञान दर्शण चारित्र तप, बल कर अनंत आणंदा। एक सहस्त्र अठ लक्षण विराजै, सेवत चौसठ इंदा।। चौंतीस अतिशय अति शोभता बहु विस्तार बखाणं। पंच तीस प्रकार करीनै तारै जीव अयाणं ।। ३. सिधजी आठ गुणां कर शौभै, अतिशय गुण इकतीसा। कर्म विदाऱ्या कारज साऱ्या, जीता राग नै रीसा। ४. अवर्ण अगंध अरस अफर्श, नहीं जोग लेश आहारं। अनंत सुख आत्मिक रा सोहै, सिद्ध सदा सिरदारं ।। ५. छत्तीस गुणे करी शोभ रह्या छै, आचारज अणगारा। निशदिन चरचा न्याय बतावै, गुण कर ज्ञान भण्डारा।। धर्माचार्य धुरा धुरंधर मोटा मुनिवर म्हारा। भरतक्षेत्र में भिक्षू शोभ्या, शिष्य भारीमाल सिरदारा।। ७. अंग इग्यारह उपांग बारह, भणै भणावै सारा। पचीस गुणां करी शोभ रह्या छै, उपाध्याय अणगारा।। ८. जघन्य दोय सहंस कोड़ जाझेरा, उत्कृष्ट नव सहंस कोड़ा। अढ़ाई द्वीप पनरै क्षेत्रां में मुनीश्वरां रा जोड़ा।। ६. बारह आठ छत्तीस पचीसा, साधु सतावीस गुणवाला।। एक सौ नै आठ गुणां री ए गावो गुणमाला।। १०. दोष बयालीस बहरत टाळे, बावन टाळे अणाचारा। पांच दोष मंडला रा टाकै, गुणकर ज्ञान भण्डारा।। ११. समत अठारह वर्ष गुणसाठे, आषाढ़ जाणीज्यो मासं। गुण गाया छै पांच पदां रा, शहर पीसांगण चौमासं।। ३०. दो भाई जवाहरात का काम करते थे। दोनों भाइयों में परस्पर गहरा प्रेम था। कुछ वर्षों बाद बड़े भाई का देहांत हो गया। उसकी पत्नी अपने इकलौते पुत्र के साथ अलग रहने लगी। दीपावली के अवसर पर मकान की सफाई करते समय लड़के की मां ने एक गठरी देखी। उसे खोला तो चमक-दमक से उसकी आंखें चुंधिया गईं। उसने पुत्र को बुलाकर कहा-'बेटा! अपने घर में ये रत्न कबसे पड़े हैं, मुझे ज्ञात ही नहीं है। जाओ, इन्हें चाचाजी के पास ले जाओ और अच्छी कीमत पर बेचकर रुपया ब्याज में दे दो। आय का एक माध्यम खुल जाएगा।' लड़का प्रसन्न मन से वह गठरी लेकर चाचाजी के पास गया और मां द्वारा परिशिष्ट-१ / २८७
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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