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उल्लास-परिचय
चतुर्थ उल्लास
चतुर्थ उल्लास के प्रथम संस्कृत श्लोक में पूज्य कालूगणी की स्तुति की गई है। प्रस्तुत श्लोक की रचना व्याकरण की दृष्टि में विशिष्ट है। एक ही श्लोक, एक ही संदर्भ और संस्कृत की सातों विभक्तियों का प्रयोग रचनाकार की विलक्षण प्रतिभा का सूचक है। __मंगल वचन रूप में रचित दस दोहों में आठ दोहे गणधर गौतम की त्रिपदी-उत्पाद, विनाश एवं ध्रौव्य से सम्बन्धित है। त्रिपदी की अस्वीकृति से वस्तु का अस्तित्व ही अस्वीकृत हो जाता है, इस तथ्य को उपमाओं के माध्यम से बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी गई है।
चतुर्थ उल्लास के प्रथम गीत में वि. सं. १६६० के सुजानगढ़-चातुर्मास का वर्णन है। उस वर्ष कालूगणी ने प्रवचन में भगवती सूत्र और चन्द चरित्र का वाचन किया। मुनि तुलसी को षड्दर्शन पढ़ाया, प्रमाणनयतत्त्वलोकालंकार का महत्त्व बताते हुए उसे पढ़ने की प्रेरणा दी तथा मुनि तुलसी द्वारा समस्यापूर्ति के रूप में विरचित 'कालूकल्याणमन्दिर' स्तोत्र का संवत्सरी के दिन परिषद में पाठ कराया। ____ मुनि तुलसी में छिपी व्यक्तित्व-निर्माण की अर्हता का आभास पाकर पूज्य कालूगणी ने उनको नवदीक्षित बाल मुनियों के अध्ययन का दायित्व सौंपा। अध्ययन के साथ उनके निर्माण की पूरी जिम्मेवारी मुनि तुलसी को सौंपकर कालूगणी निश्चित हो गए।
उसी चातुर्मास में मरुधर (मारवाड़) प्रदेश का श्रावक समाज मरुधर-यात्रा की प्रार्थना करने के लिए उपस्थित हुआ। कवि ने मरुधर की धरती के मुंह से जिस रूप में विरह-व्यथा का वर्णन करवाया है, वह इतना हृदयग्राही है कि पाठक उसे पढ़कर अभिभूत हो जाता है।
कालूयशोविलास-२ / २७