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________________ व्रण की भयंकरता देखकर डॉक्टर-वैद्यों ने उचित चिकित्सा का परामर्श दिया, पर उनकी दृढ़ संकल्प-शक्ति और अननुमेय मनोबल ने उस परामर्श को ठुकरा दिया। उत्तरोत्तर गिरते हुए स्वास्थ्य ने उनको अपने संघीय दायित्व के प्रति जागरूक कर दिया। चिरकाल से पालित अपनी धारणा को संघीय मुद्रा से अभिमंत्रित करने के लिए उन्होंने अपने उत्तराधिकार-पत्र में मुनि तुलसी का नाम अंकित कर युवाचार्य पद प्रदान के ऐतिहासिक निर्णयक्रम का क्रियान्वयन किया। ___अपने अंतिम समय में कालूगणी ने शान्त मन से आत्मा और शरीर की विवेकख्याति का अनुभव किया। ऊर्ध्वारोहित भावधारा के उन क्षणों में उनके मुखारविन्द की दीप्ति उन सबको दीप्त कर रही थी, जो उनके दाएं-बाएं खड़े होकर उस आभामंडल को निहार रहे थे। वीर माता छोगांजी ने अपने पुत्र के महाप्रयाण का संवाद सुना। एक बार मन आहत हुआ, पर शीघ्र ही जागतिक यथार्थता ने उनको अनित्य और एकत्व भावना से भावित कर दिया। मातुश्री की तत्कालीन मनःस्थिति उनके अपने लिए ही नहीं, हजारों-हजारों श्रद्धालुओं के लिए भी सशक्त आलम्बन बनी।। _ 'कालूयशोविलास' का यह संक्षिप्त रेखाचित्र कालूगणी के जीवन से संबंधित अनेक संस्मरणों, ऐतिहासिक संदर्भो तथा अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्यों की सूचना मात्र है। इसके छह उल्लास (विभाग) हैं। प्रत्येक उल्लास में छह कलाओं के अंतर्गत सोलह-सोलह गीतों का आकलन है। उल्लासों की सम्पन्नता पर पांच विशेष गीतों को पांच शिखा के रूप में संयोजित किया गया है। कुल मिलाकर एक सौ एक गीतों से संवलित यह काव्य कालूगणी के जीवन की सजीव अभिव्यक्ति है। २६ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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