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का प्रयोग होगा, आषाढ़ यहां नहीं रहेगा।
मुनि आषाढ़ साधना से बहके और वासना के जंगल में भटक गए। लब्धिप्रयोग, नृत्य-प्रदर्शन और नटकन्याओं के साथ विलासपूर्ण जीवन, इस क्रम में भी उन्हें अपने गुरु का कथन सदा याद रहता।
। एक दिन वे नृत्य-प्रदर्शन के लिए अकेले ही कहीं गए हुए थे। कार्यक्रम बदल जाने से वे निर्धारित समय से पहले घर पहुंच गए। घर पहुंचकर देखा कि जयसुंदरी और भुवनसुंदरी शराब के नशे में धुत बेभान होकर सो रही हैं। उनका विकृत चेहरा, अनर्गल प्रलाप और उसको दिए गए वचनभंग ने आषाढ़ के मन में ग्लानि उत्पन्न कर दी। जिन कन्याओं को दिया गया वचन निभाने के लिए वे अपने गुरु के निर्देश का अतिक्रमण कर जहां आए, वहां उनको दिए गए वचन का कोई मूल्य नहीं। वे नट के घर से जाने के लिए उद्यत हो गए।
कन्याएं होश में आईं। उन्होंने आषाढ़ के पांव पकड़ लिए। अपनी भूल के लिए क्षमायाचना की। भविष्य में कभी मदिरापान न करने का संकल्प व्यक्त किया। पर उनके सामने तो गुरु का वाक्य चित्र की भांति अंकित था। वे वहां से मुक्त होकर आत्मारोहण के पथ पर बढ़ गए।
गुरु के एक वचन पर दृढ़ रहने से मुनि आषाढ़ पुनः संभले और अपनी मंजिल तक पहुंच गए।
२५. मेवाड़ में एक आम धारणा थी कि दीक्षा देकर पुनः शहर में नहीं जाना चाहिए। इस धारणा के आधार पर दीक्षा-महोत्सव का कार्यक्रम विहार के दिन ही रहता था। उदयपुर में पंद्रह भाई-बहनों की दीक्षा होने जा रही थी। प्रचलित परंपरा के अनुसार वे दीक्षाएं मृगसर कृष्णा एकम को होने की संभावना थी।
शहर में दीक्षा-विरोधी वातावरण बना और विरोधी लोग प्रयत्न करने लगे कि जैसे-तैसे इन दीक्षाओं को रोकना है। उस समय तेरापंथ संघ के जिम्मेवार श्रावकों ने महाराणा भोपालसिंहजी से संपर्क स्थापित कर उन्हें सारी स्थिति से अवगत करा दिया। महाराणा ने अधिकारी व्यक्तियों के माध्यम से स्थिति का अध्ययन किया। फिर हीरालालजी मुरड़िया के माध्यम से आचार्यश्री कालूगणी को यह निवेदन करवाया कि वे कार्तिक शुक्ल पक्ष में दिल्ली जाने वाले हैं। कुछ व्यक्ति दीक्षा में बाधा डालने की सोच रहे हैं। यदि दीक्षा-महोत्सव उनके दिल्ली जाने से पहले हो जाए तो ठीक रहे। - आचार्यश्री ने राणाजी की प्रार्थना पर ध्यान दिया और विहार के दिन ही दीक्षा देने की परंपरा को तोड़कर कार्तिक कृष्ण पक्ष में दीक्षा-महोत्सव करने की
२८४ / कालूयशोविलास-२