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के लिए राजी हो गया । फिर भी अपने गुरु के प्रति उनके मन में आदर के भाव थे, इसलिए उन्होंने एक शर्त रखी कि वे अपने गुरु की अनुज्ञा लेकर वापस आएंगे। नटकन्याएं उन्हें जाने नहीं देना चाहती थीं, पर जब वे इस बात पर अड़े रहे तो उन्हें वापस आने के लिए वचनबद्ध कर जाने दिया ।
आचार्य आषाढ़ मुनि की प्रतीक्षा कर रहे थे । उन्हें सामने देखकर शांत भाव से पूछा - 'आषाढ़ ! आज इतना समय कहां लगा ? यह कोई भिक्षा लाने का समय है?"
इतना सुनते ही आषाढ़ मुनि उबल पड़े। आवेश में आकर वे बोले-' इतना समय कहां लगा? कभी गोचरी करके देखो तब पता चले। इतनी धूप में घर-घर घूमना और ऊपर से आपकी डांट । मुझसे तो अब यह सब सहन नहीं होगा । लो संभालो अपने पात्र और रजोहरण, मैं जाता हूं।'
गुरु अपने शिष्य के मुंह से यह बात सुन विस्मित हो गए। उन्होंने अत्यंत स्नेह से कहा - ' अरे आषाढ़ ! आज तुझे क्या हो गया? ऐसी बहकी-बहकी बातें क्यों कर रहा है?'
मुनि आषाढ़ पहले तो बात टालते रहे। किंतु गुरु के वात्सल्य और शांत भाव ने उनको सही स्थिति बताने के लिए आया बाध्य कर दिया। शिष्य की मनःस्थिति को समझकर गुरु ने उसे पुनः संयम में सुस्थिर करने का प्रयास किया । पर सफलता नहीं मिली। आखिर आचार्य ने कहा- 'तुम नटकन्याओं से वचनबद्ध होकर आए हो, ठीक है । क्या एक वचन मुझे भी दे सकते हो ?'
शिष्य सकुचाता हुआ बोला- 'गुरुदेव ! नटकन्याओं के पास जाने की बात छोड़कर आप कुछ भी कहेंगे, मैं उसे मानने के लिए संकल्पबद्ध हूं।' आचार्य ने उनको संकल्प कराया- 'जिस कुल में मांस और मदिरा का प्रयोग होगा, वहां वह नहीं रहेगा।' गुरु वचन का संबल साथ में लेकर वह चला और नट के घर पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने नट के सामने दोनों कन्याओं को अपना संकल्प सुनाते हुए कहा- 'मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए आया हूं, पर मेरी एक शर्त है कि यदि यहां मदिरा का व्यवहार होता है तो मैं नहीं रह सकता।' नटकन्याएं इस बात पर एक बार सहम गईं। उन्होंने सोचा - अभी तक साधुत्व का रंग पूरा उतरा नहीं है, इसलिए ऐसी बात कर रहा है। जब हमारे साथ घुलमिल जाएगा तो स्वयं मदिरापान करने लगेगा। इस चिंतन के साथ वे बोलीं- 'आप ऐसा क्यों सोचते हैं? यहां ऐसा प्रसंग उपस्थित होने का प्रश्न ही नहीं है।' आषाढ़ ने नटकन्याओं को इस बात के लिए वचनबद्ध कर लिया कि जिस दिन इस परिवार में शराब
परिशिष्ट-१ / २८३