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साथ अनेक ध्यानी, मौनी, तपस्वी और स्वाध्यायी मुनि थे। उनमें आषाढ़ मुनि अत्यंत विनीत, गुरुभक्त और तपस्वी साधक थे। तीव्र तपस्या के द्वारा उन्हें कई लब्धियां (चामत्कारिक शक्तियां) भी उपलब्ध हो गई थीं।
एक दिन आषाढ़ मुनि भिक्षा के लिए शहर में गए। एक श्राविका ने उनको एक मोदक (लड्डू) भिक्षा में दिया। मोदक वास्तव में मोद देने वाला था। मुनि मोदक खाने के लिए आतुर हो उठे। सहसा उनके मन में आया-मेरे पास एक मोदक है। यह गुरुदेव को भेंट कर दूंगा, फिर मैं क्या खाऊंगा? एक मोदक और मिल जाए तो अच्छा रहे।
मुनि ने लब्धि का प्रयोग किया और बाल मुनि का रूप बनाकर उसी श्राविका के घर में प्रवेश किया। श्राविका खुश हुई। उसने प्रसन्नतापूर्वक एक मोदक भिक्षा में दे दिया। मुनि की इच्छा फली, पर एक विकल्प फिर खड़ा हो गया-बाल मुनि को दिए बिना यह मोदक में कैसे खा सकता हूं?
इस समस्या को समाहित करने के लिए वे वृद्ध मुनि बनकर उसी घर में पहुंचे। श्राविका का मन बांसों उछलने लगा। अपने सौभाग्य की सराहना कर उसने वृद्ध मुनि को एक मोदक का दान दिया।
मुनि की समस्या अब भी समाहित नहीं हुई। इस बार वे रुग्ण मुनि का रूप बनाकर भिक्षा के लिए गए। झुकी देह, चेहरे पर झुर्रियां, लड़खड़ाते पांव, एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में भिक्षापात्र। श्राविका ने रुग्ण मुनि के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए उन्हें भिक्षा में वही एक मोदक दिया। मुनि आषाढ़ अब अपने मूल रूप में परिवर्तित होकर चले।
इधर मुनि के रूप-परिवर्तन का क्रम चल रहा था, उधर अपने मकान की छत पर खड़ा एक नट इस विलक्षण प्रयोग को देख रहा था। यह व्यक्ति हमारी नट-मंडली में सम्मिलित हो जाए तो हमारी नृत्यविद्या संसार के लिए एक आश्चर्य बन जाए। यह सोच उसने जयसुंदरी और भुवनसुंदरी नामक अपनी कन्याओं को संबोधित किया। कन्याएं उपस्थित हुईं। नट उनकी ओर अभिमुख होकर बोला-'तुम्हारी कला, रूप, लावण्य और वाग्पटुता सब व्यर्थ हैं, यदि तुम उस मुनि को सम्मोहित नहीं कर सको। मैं मुनि को अपने घर लेकर आता हूं, तुम अपनी तैयारी करो।'
नट आषाढ़ मुनि का मार्ग रोककर खड़ा हो गया। वह मुनि से प्रार्थना करने लगा कि उसकी कुटिया को पवित्र कर भिक्षा ग्रहण करें।
मुनि को काफी विलंब हो चुका था। अब वे जल्दी-से-जल्दी गुरु के पास पहुंचना चाहते थे। उन्होंने कहा- 'मैं भिक्षा करके लौट रहा हूं। अब मुझे भिक्षा
परिशिष्ट-१ / २८१