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वहां न कोई भीति थी और न कोई ईति थी। गुरुदेव की दया से यह भुजंगप्रयात भी प्रख्यात हो रहा है।
___(३८) अरावली के जंगल में कड़कड़ाहट के साथ शक्तिशाली केसरीसिंह की गर्जना सुनी। उससे कायर लोगों के कलेजे धड़कने लग गए।
(३६) लोग आपस में बतियाने लगे कि आज सिंह ने दहाड़ क्यों की? क्या तुम्हें इसका कारण ज्ञात है? यदि नहीं है तो उसे कवि की कल्पना के आधार पर सुनो।
__(४०) फूलाद की चौकी पर शासनछत्र पूज्य कालूगणी विराज रहे हैं। उनकी अलौकिक आभा चारों ओर फैल रही है। उस अरावली के जंगल में बहुत लोग इकट्ठे हो रहे हैं। यत्र तत्र वृक्षों की पंक्तियां खिली हुई हैं। वनराजि विचित्र रूप में विकसित है।
___ (४१) कहीं-कहीं हरिण और सियार खिलखिलाहट कर रहे हैं। कहीं बिलाव, मोर और चूहे मिल रहे हैं। कहीं सांभर, सूअर और खरगोश की सरसराहट हो रही है। कहीं बड़े-बड़े पशु धांय-धांय की आवाज करते हुए विचर रहे हैं।
(४२) अपनी गुफा में अपने आसन पर आसीन मृगराज मन में सोच रहा है-अहो! आश्चर्य है, आज अजब-गजब की घटना घटी है। जंगल में अचानक इतनी शान्ति हो रही है, उसका कुछ कारण होना चाहिए।
(४३) मेरे प्राण पराजय को प्राप्त हो रहे हैं। ये जंगली जानवर मुझसे डर नहीं रहे हैं। ये मन में प्रफुल्ल होकर निर्भय रूप में वन में इधर-उधर घूम रहे हैं। ये गर्व से भरे हुए सब अपना-अपना गाना गा रहे हैं।
(४४) आकाश में सूर्य अस्त हो गया, फिर भी अन्धकार का साम्राज्य नहीं छा पाया। प्रश्न उपस्थित हो रहा है कि सूर्य और चन्द्रमा के बिना ही आज पूरा भूतल और दिग्गज प्रकाशित कैसे हो रहा है?
(४५) गर्मी कहां चली गई, इसका हेतु नहीं मिला। आज इस जंगल को प्रकम्पित करनेवाला बल भी कहां चला गया? कहीं यहां पर अखिल विश्व के स्वामी, अहिंसक जिन का अवतरण तो नहीं हो गया?
(४६) अथवा जगत में जिनकी उपमा को धारण करनेवाला कोई गणपति यहां प्रकट हुआ है क्या? मृगराज ने अपने मन में एक अनुमान की संरचना की और वह शीघ्रता के साथ अपनी गुफा से उठा।
(४७) प्रत्यक्ष हेतु की परीक्षा करने के लिए मृगराज गुफा से बाहर आया। वह बड़ी दक्षता के साथ वृक्षों की ओट में छिप गया। दहाड़ने का मिष लेकर
परिशिष्ट-१ / २७६