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________________ सर्दी का अनुभव हो रहा है और कहीं बड़े-बड़े पहाड़ सिर उठाए खड़े हैं। (३०) कहीं बीच-बीच में विशाल खोगालें-दर्रे हैं। वे भयंकर कमाल की हैं और खालों के जाल से जड़ी हुई हैं। कुछ चट्टानें रास्ते की ओर झुकी हुई हैं। यदि राही ध्यान न रखे तो उसके सिर पर चोट लग जाती है और सिर भन्नाने लगता है। कहीं झन्नाट की ध्वनि से पानी बह रहा है। उससे मिट्टी में तरेड़ें हो रही हैं। (३१) कहीं पहाड़ों के बीच बगदों-सुरंगें खोदी हुई हैं। उनसे रण-रण की ध्वनि के साथ रेलगाड़ी जा रही है। कहीं बोझे (बूंटे) खड़े हैं। कहीं रोझ (नील गायें) स्वेच्छाचारी रूप में घूम रहे हैं। कहीं खोज-खोज पर पथिकों की फौज-सी चल रही है। (३२) अटवी भी बड़ी भयंकर है, जहां झंकार हो रही है। क्षण-क्षण सन्नाटा-सा छाया हुआ है। ऐसी स्थिति में वहां कौन ठहर सकता है। कहीं चौकानुमा पत्थरों की कतार लगी हुई हैं। वहां पैर फिसल जाए तो ऐसा लगता है मानो वह घृष्ट-मृष्ट काल की क्यारी है। (३३) पूज्य कालूगणिराज उस अरावली के एक स्थान पर निर्भय होकर विराजमान थे, जिन्होंने अहंकार रूप हाथी को एक झटके में मदहीन बना दिया। उनके साथ सुबुद्धि वाले सुधी शिष्यों का समूह था। वे शिष्य उमंग के साथ अच्छे ढंग से गुरु की सेवा में लीन हो रहे थे। (३४) उनके आसपास चारों तरफ भक्तों की टोली थी। कहीं तम्बू तने हुए थे। कहीं सुन्दर छोलदारियां (छोटे तम्बू) तनी हुई थीं। कहीं चादर और दरी बिछाई हुई थी। कहीं-कहीं बैठने के लिए धोली-धोली समतल भूमि की खोज कर ली गई। (३५) कुछ लोग अपनी आंखों के सामने स्वामी (पूज्य कालूगणी) को देख रहे थे। कुछ लोग इकट्ठे होकर अरावली की सीनेरी निहार रहे थे। कुछ लोग फूस के छप्पर देख रहे थे। कुछ शाल देख रहे थे। कुछ लोग उनींदे हो रहे थे और कुछ लोग खर्राटे भर रहे थे। (३६) फूलाद की चौकी अनोखी और अमन्द रूप में सुन्दर लग रही थी। सब द्वेषी समुद्र से पार चले गए। उस रात को चन्द्रमा की चांदनी भी नहीं चमक रही थी। केवल मूलनन्द कालूगणी की रोशनी प्रकाश दे रही थी। (३७) उस फूलाद की चौकी पर अद्भुत रंग जम रहा था, छक्कम-छक्का हो रहा था। सब लोग बिना किसी भय के सुखसाता का अनुभव कर रहे थे। २७८ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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