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________________ राजस्थानी भाषा की अपनी कुछ विशिष्ट शैलियां भी हैं, जिनमें डिंगल, पिंगल आदि प्रसिद्ध हैं। कालूयशोविलास डिंगल शैली के प्रभाव से मुक्त नहीं है। पूज्य कालूगणी मारवाड़ से मेवाड़ जाते समय फूलाद की चौकी पधारे। दिन-रात वहां रहे। उस प्रवास और उसके पारिपार्श्विक परिवेश का वर्णन भुजंगप्रयात एवं मोतीदाम छन्द में डिंगलशैली में किया गया है। वह वर्णन इतना सुन्दर और प्रवाहपूर्ण है कि उसे पूरे कालूयशोविलास में एक नया प्रयोग माना जा सकता है। डिंगल कविता को पढ़ने की शैली भी अलग ही प्रकार की है। सामान्यतः चारण आदि इस शैली में प्रभावी ढंग से अपनी प्रस्तुति देते हैं। कालूयशोविलास के रचनाकार आचार्यश्री तुलसी भी एक विशिष्ट अदा के साथ डिंगल शैली में उक्त स्थलों का पाठ करते तो पाठक मंत्रमुग्ध-से हो जाते। ___भाषागत सौन्दर्य के बावजूद फूलाद की चौकी का वर्णन करने वाले पद्य इतने क्लिष्ट हैं कि राजस्थानी के ख्यातनामा विद्वान भी उनकी अर्थयात्रा में उलझ जाते हैं। उक्त समस्या आचार्यश्री महाप्रज्ञ के सामने प्रस्तुत की गई तो उन्होंने उन पद्यों का हिन्दी रूपान्तरण कर दिया। पाठकों की सुविधा के लिए चतुर्थ उल्लास की दसवीं दाल के २५ से ५० तक पद्यों का हिन्दी अनुवाद यहां दिया गया है (२५) अटवी चारों ओर से बड़ी सुन्दर लग रही है। कहीं-कहीं बरगद की बहुत विस्तृत और भारी जटाएं भूमि को छू रही हैं। कहीं नीम, कदम्ब, जामुन और आम की झाड़ियां हैं तथा कहीं यमराज की जिह्वा जैसी बबूल की शूलें सीधी खड़ी हैं। (२६) कहीं खाखरा (खदिर) की खरखराहट हो रही है। कहीं घग्घराहट ध्वनि के साथ निर्झर का जल बह रहा है। कहीं धव और कहीं महू के पेड़ खड़े हैं। कहीं थूहर के दण्ड खड़े हैं और कहीं बरगद के पेड़ों का जाल है। (२७) कहीं सियारों की फेतकार की आवाज सुनाई दे रही है। कहीं सांपों के फुफकारने की आवाज आ रही है। कहीं उल्लू के समूह की घुग्घाट ध्वनि सुनाई दे रही है और कहीं. वन्यजीवों की बुकबुक्काहट हो रही है। (२८) कहीं सिंहों के गर्जन से गुफाएं गडक्क की ध्वनि कर रही हैं। कहीं केसरी सिंह निकुञ्जों को प्रकम्पित कर रहे हैं। कहीं बड़े-बड़े पत्थरों और चट्टानों के फिसलने से खड्डों में खड़क की आवाज हो रही है और कहीं बलपूर्वक पैर रखने से धूलिकणों की चुभन होने लगती है। (२६) एक ओर निकट ही मेवाड़ की घाटी अरावली खड़ी है। वह चलने वालों की गति के लिए बड़ी भयंकर है। कहीं बहुत ऊंची चढ़ाई है, कहीं बहुत परिशिष्ट-१ / २७७
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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