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________________ सैद्धांतिक ज्ञान काफी परिपक्व था । आचार्य श्री तुलसी ने उनको हेमराजजी स्वामी (सिरियारी) की प्रतिकृति मानकर उनका गौरव गाया है। मुनि हेमराजजी मुनि तुलसी को शास्त्रीय और सैद्धांतिक धारणा कराना चाहते थे, पर आचार्यश्री की अभिरुचि इस ओर कम थी। मुनि हेमराजजी का चिंतन था कि मुनि तुलसी इस विषय में पारंगत नहीं होंगे तो सैद्धांतिक ज्ञान की परंपरा आगे कैसे बढ़ेगी? इस दृष्टि से उन्होंने एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग किया । मुमिराजजी ने मुनि तुलसी को बासठिया, गतागत आदि थोकड़े सिखाए, पर कभी रटाए नहीं। वे बात करते-करते एक - एक बोल का रहस्य समझाते थे । समझाने की कला उनकी विचित्र थी । हर कठिन तथ्य को वे इतनी मधुरता बताते कि उसमें उपन्यास जैसा रस अनुभव होने लगता । आचार्यश्री तुलसी ने उनके इस प्रयास को अपने प्रति आभार रूप में स्वीकार किया है । ६. गांव के बाहर रंगरेजों के कई परिवार रहते थे । वस्त्र रंगने के लिए उन्होंने जमीन में रंग की कई कुंडें बनवा लीं। उनमें नीला, हरा, पीला, लाल, बैंगनी आदि रंगों का घोल भर लिया। एक दिन एक घने गहरे बालोंवाला कुत्ता नीले रंग की कुंड में गिर पड़ा। जब वह बाहर निकला तो उस पर गहरा नीला रंग चढ़ गया। अब वह एक विचित्र जानवर - सा प्रतीत होने लगा। अपने वैचित्र्य का लाभ उठाने के लिए वह जंगल में जाकर एक ऊंचे टीले पर बैठ गया । थोड़ी देर में वहां कुछ पशु इकट्ठे हो गए। उस विचित्र जानवर को देख वे उसके पास पहुंचे और उसका परिचय पूछा। कुत्ते ने कहा- 'तुम मुझे भी नहीं जानते। मैं इस जंगल का पशु हूं और वनराज ने मुझे इसका स्वामित्व सौंपा है।' पशुओं द्वारा नाम पूछे जाने पर उसने बताया- 'मेरा नाम है कुक्कड़धम्म ।' पशुओं ने कुक्कड़धम्म को एक शक्तिशाली पशु माना और वे उसकी सेवा में जुट गए। सहसा गांव के बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दी कुक्कड़धम्म से रहा नहीं गया, वह भी उनके साथ भौंकने लगा । भौंकते ही पशुओं को उसका भेद मिल गया । सबने मिलकर उस पर आक्रमण कर उसे मार डाला । धोखा दिया जा सकता है, पर वह अधिक समय तक टिक नहीं सकता । ७. युवा सम्राज्ञी अपने शहर के एक युवक के प्रति आकृष्ट हो गई। वह प्रतिदिन अपने गवाक्ष में बैठकर उस युवक की प्रतीक्षा करती । जब वह महल के नीचे से गुजरता तो वह अनिमिष नयनों से उसे तब तक देखती रहती, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो जाता । एक दिन युवक ने आंखें ऊपर उठाईं। महारानी उसकी ओर देख रही थी । परिशिष्ट-१ / २६६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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