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दोनों की आंखें मिलीं। युवक सहमा और उसने आंखें झुका लीं। उसने दूसरी बार ऊपर देखा, महारानी उसी मुद्रा में नीचे झांक रही थी। उसकी आंखों में संकेत था और संकेत में था आमंत्रण । युवक अभिभूत हो गया। अब वह एक से अधिक बार उस पथ से गुजरने लगा ।
सम्राज्ञी और वह युवक मानसिक दृष्टि से काफी निकट आ गए। अब वे दोनों मिलने के लिए आतुर हो रहे थे, पर कोई उपाय कारगर नहीं हो रहा था ।
उस नगर की मालिन फूलां राजा की विश्वासपात्र थी । वह फूलों की टोकरी लेकर प्रतिदिन अंतःपुर में जाती । युवक उस मालिन से मिला और बोला- 'मुझे जैसे-तैसे महारानी के पास पहुंचा दो । मैं तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूंगा।' मालिन लोभ में आ गई। उसने कहा - ' रनिवास में जाने का रास्ता राजसभा के बीच से है । इसलिए वहां पहुंचना सहज बात नहीं है। हां, यदि तुम मेरे कपड़े पहनकर मेरी पुत्रवधू के रूप में मेरे साथ चलो तो काम हो सकता है ।' युवक इसके लिए तैयार हो गया ।
मालिन ने उस युवक को अपने वस्त्र पहनाए और उसके सिर पर फूलों की डलिया रख दी। राजमहल में पहुंचने के लिए वह राजा के आगे से गुजरी। राजा ने उसे टोका - 'यह तुम्हारे साथ कौन है ?' मालिन बोली- 'महाराज ! यह मेरी पुत्रवधू है। इतने दिन मैं सारा काम अकेली देखती थी, अब बूढ़ी हो गई हूं। इसे साथ में रखने से मेरा काम हल्का हो जाएगा और यह काम सीख लेगी।' राजा ने उसको रोका नहीं, पर वह उसके प्रति संदिग्ध अवश्य हो गया । फूलां ने उसको महारानी से मिला दिया। लौटते समय ज्योंही वह राजा के निकट से गुजरा, उसका पांव जोर से टिका । राजा के मन में जगा हुआ सन्देह फिर उभरा। उसने अपने सचिव को उनके पीछे जाकर पूरी जानकारी करने का निर्देश दिया ।
सचिव के द्वारा संकेतित व्यक्तियों ने उनका पीछा किया। मालिन के घर पहुंचकर जब उस युवक ने अपना मुंह खोला तो गुप्तचरों ने उसको पकड़ लिया और राजा के सामने उपस्थित कर दिया ।
राजा ने सारी स्थिति का अध्ययन कर महारानी को दंडित किया, फूलां मालिन को दंडित किया और उस धूर्त युवक को दंड देने का निर्देश देते हुए कहा - 'इसका मुंह काला करो, पैर नीले करो, सिर के बाल कटवाओ, पर पांच शिखा - चोटी रख दो । गधे पर सवारी कराओ और कोतवाली के चबूतरे पर रखे हुए सवा हाथ के जूते से उस पंचशिख को पीटते हुए सारे शहर में घुमाओ ।
२७० / कालूयशोविलास - २