________________
१. सांकेतिक घटनाएं
१.
तीर्थंकर केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करते हैं । उस समय गणधर उनकी वाणी को ग्रहण करते हैं और उसके आधार पर द्वादशांगी की रचना होती है। भगवान महावीर के तीर्थप्रवर्तन काल में गणधर गौतम ने प्रश्न किया- भगवन ! तत्त्व क्या है ? भगवान ने उत्तर दिया- उत्पन्न होता है । गणधर गौतम ने सोचा - सब पदार्थ उत्पन्न होते रहेंगे तो इस संसार में कैसे समाएंगें ? उन्होंने फिर पूछा - भगवन! तत्त्व क्या है ? भगवान ने उत्तर दिया- विनष्ट होता है । सब पदार्थों का विनाश होने के बाद संसार में क्या बचेगा ? इस जिज्ञासा से प्रेरित होकर उन्होंने फिर पूछा-भगवन तत्त्व क्या है ? भगवान ने उत्तर दिया - स्थिर रहता है ।
I
गणधर गौतम ने त्रिपदी का आधार पाकर अपने विशिष्ट ज्ञान से चौदह पूर्वों का ज्ञान कर लिया । विद्वान वे स्वयं थे ही, भगवान की वाणी निमित्त बनी और उनके ज्ञानावरणीय कर्म का विशिष्ट क्षयोपशम हो गया । इस त्रिपदी के अनुसार उत्पाद, विनाश और ध्रौव्य ही तत्त्व है । द्रव्य सदा स्थिर रहता है। पर्यायों में उत्पाद और विनाश होता रहता है। भगवान द्वारा निरूपित यह त्रिपदी ही समग्र तत्त्वज्ञान का आधार है।
२. ‘कालूकल्याणमन्दिर’ कालूगणी की स्तुति में लिखा हुआ स्तोत्र है । उसकी रचना कल्याणमंदिर स्तोत्र के प्रत्येक पद्य से एक-एक पंक्ति लेकर समस्यापूर्ति के रूप में की गई। इस काव्य ग्रन्थ को लिखने की प्रेरणा 'जैन मेघदूत' आदि समस्यापूर्ति के रूप में लिखे हुए काव्य-ग्रन्थों के अध्ययन से मिली ।
सबसे पहले मुनि कानमलजी और मुनि सोहनलालजी ने भक्तामर स्तोत्र की एक-एक पंक्ति समस्या रूप में लेकर कालूभक्तामर की रचना की। उनके इस प्रयोग से दूसरे संतों में भी जागृति आई । मुनि नथमलजी (बागोर) ने कल्याण
२६६ / कालूयशोविलास-२