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________________ प्रशस्ति माणक-महिमा डालिम-चरित्र अरु मगन-चरित रो संपादन, बत्तीसै जयपुर पावस में एकांतवास रो अभिवादन। तब ही श्रीकालूयशोविलास पुनर्वीक्षण-हित हाथ लियो, संशोधन परिष्कार पूर्वक प्रस्तुत करणो संकल्प कियो।। पूरै पावस फिर शेषकाल पदयात्रा में भी अविश्राम, ओ सतत सुचारू काम चल्यो बस्ती-बस्ती पुर ग्राम-ग्राम। भाषा-शैली में परिवर्तन उन्मुक्त हुयो खुल्लै हाथां, नूतन-सी कृति तैयार हुई निर्णायक स्थिति आता-आतां ।। नव रचना को-सो श्रम लाग्यो जागरणां में जागृति आई, बूथै स्यूं ज्यादा कनकप्रभा इणमें पुरुषार्थ लगा पाई। परिमार्जित प्रतिलिपि स्वयं करी परिशिष्ट सटिप्पण नामक्रम, लिख कथावस्तु प्राक्कथन मथन संपादन कीन्हो है सक्षम।। अन्योन्याश्रित सुंदर सुयोग इक परखण योग प्रवृत्ति हुई, श्री जय आचार्य गुलाब सती रै युग री पुनरावृत्ति हुई। मूल्यांकन इं सारी स्थिति रो करणैवाळा ही कर सकसी, साध्वी-समाज री आ प्रगती लिखता-लिखता लेखक थकसी।। कालूयशोविलास-२ / २५५
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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