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________________ १२. अवगुण री अवहेलना घृणित न व्यक्ति विशेष । सद्गुण री संवर्धना आजीवन व्रत एष ।। १३. खलता खलती खिणखिणे करता मूलोच्छेद । गिता हुड़ो बड़ो अयि ! अयि ! नाथ अभेद ।। १४. नयि-विनयी री राखता निज अवयव ज्यूं सार । खाता अनयी अविनयी खुद ही पग-पग मार । । १५. जिणरै सिर पर कर धर्यो लायक गुण अवलोक । पेलो नहिं पेलो हुवै तब लों नहिं निज रोक ।। १६. तुष्टमना गुरु गुरु करै लघु नै पिण लव मांहि । गुरु नै पिण लघु इतरथा आ क्षमता गुरु बांहि । १७. छीन सकै छिन में गुरू पद-युवराज प्रदत्त' । प्रकुपित शिष्य-कुटेव स्यूं इण में गुरु समरत्थ । । १८. अष्ट संपदा' संपदा षोडश उपमा संग | आगम में आख्यात है सकल मिलै गुरु - अंग ।। १६. आगम में आचार्य रा द्वेधा गुण खटतीस । परिपूरण गुरु- पिंड में मैं झांक्या नतशीष ।। २०. अतिक्रमी रवि पवि - छवी आतप विक्रमवान । जान भरी बेजान में पावन पुण्यनिधान ।। २१. अद्भुत धाय व्रतिपती धुर जति-धर्म समर्म । कति जन नति कर-कर गया मेटी मन रो भर्म ।। २२. खूब निभायो खांति स्यूं वीरुद पतित- उधार । कुण-कुण कब पावन बण्या ? है गणना दुश्वार ।। २३. मघव- हत्थ दीक्षित छतां मघवा गुण आसान । महावीर रा पिण ग्रह्या ओ आश्चर्य महान ।। २४. एक-एक गुण ऊपरे कोटि-कोटि कविराज । वरण कर करता थकै निज कविता रै व्याज ।। २५. यदि सहसा साहस करूं मुनिपति ! मैं मति - अल्प । (तो) पंगू चढ़ी पहाड़ पे सोसी साझी तल्प ।। १. देखें प. १ सं. १५२ २. देखें प. १ सं. १५३ ३. देखें प. १ सं १५४ ४. देखें पं. १ सं. १५५ २५० / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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