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शिखा-५.
दोहा
१. कालू प्रतिभालू अतुल, हृदयालू हृदयेश।
सतत शयालू शिव-शयन, स्पृहयालू भव-शेष ।। २. श्रद्धालू-हित सुरतरु, परम कृपालू पूज्य । ___गौरव गृहयालू कृते, प्रतिपल दिल उपयुज्य।। ३. शुभ-भावन-सुरभी कृते, पूज्य पुहुप-प्रतिरूप।
सुमन-सुमन-निवसन अहो, गुरु शतपत्र अनूप ।। ४. सज्जन-जन शतपत्र हित, नाथ विमल जल जान।
सद्गुण-जल-भर जलनिधि, छोगां-सुत गण-भान।। ५. अकथ अनघ अविचल अमल, गुण गरिमामय गात।
प्रमित वरण विवरण करूं, सज्जन सुणो सुजात।।
'जय जय जय जोगीसरू, छिति-विश्रुत छौगेय। भव्य भविक आधेय, गुण-गण गौरव गेय।।
६. पंच महाव्रत प्रेम स्यूं पाळ्या निरअतिचार।
भाव विशदवर भावना पंच बीस सुखकार ।। ७. आराध्या अन्तरमना प्रतिपल पंचाचार। ___जं वाइद्धं आदि दे सब अतिचार निवार। ८. पंच समिति गुप्तित्रयी प्रवचनमाता आठ।
ससम्मान आराधना कीन्ही गणसम्राट।। ६. क्षय कीन्हा मनु मुनिपती इंद्रिय-विषय-विकार।
रग-रग रमी विरागता वीतराग अनुहार।। १०. जामण-जाया हा जिस्या आजीवन अम्लान।
ब्रह्मचर्य री वर्यता जोवो जन सुज्ञान ।। ११. आसपास पिण कुण लखी पुद्गळ-गाढ-पिपास।
उदाहरण आदर्श ओ अनासक्ति रो खास ।।
१. लय : लक्ष्मण राम स्यूं बीनवै
शिखा-५ / २४६