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________________ जय-कृत सूत्र ‘भगवती-जोड़' पुराणी विधि स्यूं धारी रे, कीन्हो काम कमाल जी।। ४०. बिखऱ्या पेच भले पगड़ी रा पिण कुण वीसर ज्यासी रे, बनणा बालू-सेठ री। सुजाण खारड़ और 'गुलाब लूणिया जयपुरवासी रे, जुगती जोड़ी ठेट री।। ४१. . नव हजार गाथां री लागत, छूट बच्छ मुनि चाही रे, सद्गुरु विनय न स्वीकर्यो। सन्त पुस्तकां भेंट अबै अगवाणी विचरूं नाही रे, फिर झट आपो संभरयो ।। ४२. फूलां जिसी करकशा नै सहयोगे स्वाम निभाई रे, वत्सलता हद बावरी। बीकानेर ‘समेर बोथरा' सारी विध समझाई रे, आखिर गणबाहिर करी ।। ४३. दो-दो पोथी रो पडिलेहण अथवा काजो धारो रे, प्रात-सांझ साथे रहो। चौकां रा कर धड़ा परठ अथवा परठणा उतारो रे, ___ गण-अनुशासन में बहो।। ४४. घटना घटित हजारां देवू किण-किण नै अभिव्यक्ती रे? . असमंजसता सामनै। किण मुख पाऊं खीर? केकसी री आ साची उक्ती रे, सोचूं लेखण थाम नै।। ४५. शासण में युग-युग संघीय भावना भरता रेसी रे, औ संस्मरण सुहावणा। कालूयशोविलास-शिखा नित जीवन-जागृति देसी रे, 'तुलसी' रंग बधावणा।। १-७. देखें प. १ सं. १४५-१५१ २४८ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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