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________________ २६. वामन जन मनसा धरी गगन गहेसी बाथ। गणसी अभण गवार ही ग्रह-तारक-संघात।। २७. आज लगे कुण पावियो गुरु-गुण-गरिमा थाग। तो 'तुलसी' किम तोलसी. गरुजलधिज-जलझाग।। २८. अब तो वर्णन विश्रमी, शमी! यमी! गुरुराज! कोटि-कोटि श्रद्धांजलि करूं समर्पित आज।। २६. एक-एक गुण ऊपरे बलिहारी बहु बार। ___सहज समर्पण कर करूं दूर दुरित-घन-भार।। ३०. म्हारै पर गुरुवर कर्यो अथग-अथग उपकार। तिण नै खिण-खिण संभरूं हुलसित-चित हर बार।। ३१. तूं म्हारो बाल्हेश्वरू तूं म्हारो सरदार। प्राण हृदय जीवनजड़ी जीवन रो आधार।। ३२. स्मृति-पथ में आवै सदा बात पाछली रात। सायं पड़िकमणो कियां आ'र समै अवदात।। ३३. पढतां और पढावतां विद्यार्थी शिशु संत। अनहद स्मृतियां ऊभरै जद बैठू एकत।। ३४. तब खेंचीजै सांतरो हृदय-पटल पर चित्र। . रंग पत्र बिन पिच्छिका अद्भुत और विचित्र।। ३५. मन-मानस में उच्छलै नाना रूप तरंग। प्रबल वेग आवेग स्यूं बण जावै उत्सुंग।। ३६. तिणनै देवण सान्त्वना आरंभ्यो आयास। ग्रंथ रूप सहज्यां बण्यो कालूयशोविलास।। ३७. शासण त्रिशलानंद रो त्रायक तेरापंथ। आद्य प्रवर्तक आर्यवर भिक्षु पूज्य भदंत।। ३८. दीपां-कूख उजाळणो बल्लू-कुल-कोटीर। जिनदर्शन शिरसेहरो विजयी धीर गभीर।। ३६. आर्हत तत्त्वामृत सुगुरु मति-छकणै स्यूं छाण। सर्व सुलभ घर-घर कर्यो आन्तर प्यास बुझाण।। ४०. स्वार्थ परार्थ यथार्थ है यदि परमार्थ सहीत। बिन परमारथ व्यर्थता भिक्षू-वचन विनीत।। ४१. संवर अरु वर निर्जरा दोनूं ही शिव-पंथ। बाकी उज्जड़ भटकणो भाखै भिक्खू संत।। शिखा-५ / २५१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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