SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. रैन अंधेरी खड़यो देख मुझ शिव-मुनि आंख दिखाई रे, क्यूं ऊभो है पंथ में? इरै ऊपर म्हांरो हाथ न देखो भाखै सांई रे, कुण के बोलै अंत में ' ।। ८. गंगाशहर प्रथम पावस में गधियाजी गुरु पासे रे, म्हांरै बारे में कही । समिति - गुप्ति में सावधान है स्थिरजोगी अभ्यासे रे, होणहार होसी सही ।। ६. निब्बे माघ लाडणूं बिरधीचनजी बात बताई रे, पूज्य पिता दरसाव री । उत्सुकता उत्कर्ष हुवै क्यूं, क्यूं मन मान बड़ाई रे ? महिमा संयम-भाव री ।। १०. बालगोठिया संतां सह 'सिन्दूरप्रकर' मैं सीखूं रे, पड़तां परबारी मिली। निज पूठै स्यूं मनै दिराई किणनै अबै अडीकूं रे? म्हांरी मनवनिका खिली ।। ११. कब ही पूछूयो अमुक ग्रन्थ आवश्यक लिखणो चावूं रे, क्यूं ? पूठे में है पड्यो' । हर प्रसंग में आशातीत महर री नजरां पावूं रे, मैं भावुक रहतो खड़यो ।। १२. धोरै स्यूं सीधो उत्तरतां हरियाली में रेती रे, बचपन स्यूं मैं नां कही । दियो दंड फिर माफ कियो आ योगखेम की खेती रे, श्री कालू नित निर्व ।। १३. उदयापुर में दसरावै राणाजी री असवारी रे, अजब अनोखी नीकलै । इण लालच में औरां साथै सो ओळमो भारी रे, मानस - संयम सीख लै ।। १४. गुरुवाणी री करी अवज्ञा, प्रबल प्रमाद - प्रयोगे रे, डूंगरगढ़ निशि बातड़ी" । १ - ८. देखें प. १ सं. ११७ - १२४ २४४ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy